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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
रखनी चाहिए? एकांत शैय्यासन की! शैय्या और आसन एकांत में, यह ज्ञानियों का पसंद किया हुआ मार्ग है कि दो में मज़ा नहीं है। दो से एक होते ज़रूर हैं, लेकिन फिर एक में से वापस दो हो ही जाते हैं। इसलिए जब तक यह साथ है, तब तक जेल समझना। जेल में और कोई चारा ही नहीं होता न! पुलिसवाला कहे वैसा करना पड़ता है। भगवान की (भाषा में) अहिंसावाला कैसा होता है? एकांत शैय्यासनवाला होता है। भले ही सबके साथ उठे-बैठे, लेकिन शैय्यासन एकांत होता है।
एकांत शैय्यासुख का गुण उत्पन्न होने के बाद ही वास्तव में सुख उत्पन्न होता है। जब सामनेवाले व्यक्ति को आरपार देखना आ जाए, तब एकांत शैय्यासुख नामक गुण उत्पन्न होता है। फिर उसे अकेले रहना और एकांत ही अधिक सुखकर लगता है। इसके बाद उसमें वास्तविक मस्ती उत्पन्न होती है। भीतर सुख तो भरपूर पड़ा है, वह प्रकट होता है। फिर उसकी वाणी, वह जो भी बोले, उसे शास्त्र ही माना जाता है।
एकांत शैय्यासन। एक आसन और एक शैय्या हो जाए तब परम सुखी हो जाता है, जो कि कई सालों से हमारा रिवाज़ है और वीतरागी मस्ती का अनुभव कर रहे हैं। 'दादा' का यह पद आपको यदि एक ही घंटे के लिए मिल जाए तो सदा के लिए मेरे जैसे सुखी हो जाओगे।
बाकी, जब तक स्त्री हो तब तक किसी को मोक्ष की आशा ही नहीं रखनी चाहिए। जब तक 'विषय हैं तब तक आत्मा को जाना ही नहीं है' ऐसा कहा जाता है। किसी की यदि स्त्री के प्रति दृष्टि जाए तो उसने ज़रा सा भी, अंशमात्र भी आत्मा नहीं जाना है। उसने आत्मसुख का अनुभव ही नहीं किया है! वर्ना आत्मसुख तो कैसा होता है!
इतना ही जीतना है, स्त्री विषय! स्त्री के प्रति दृष्टि हुई, उस तरफ का विचार भी आया कि खत्म हो गया। मोक्ष की नींव ही उखड़ गई और यदि विचार आए, तो आप क्या करोगे?
प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण, 'शूट ऑन साइट'। दादाश्री : सिर्फ यह विषय ही छोड़ दो न? विषय छोड़ दोगे तो