________________
चारित्र का प्रभाव
१८३
शीलवान यानी निर्भय। भगवान भी फिर उसे पूछ नहीं सकते। बोलो, भगवान भी नहीं पूछ सकें, तब वह कैसी स्थिति होगी उनकी?
अत: अब कुछ निबेड़ा लाओ। अनादि से मार खाते आए हो और उसमें ऐसा कौन सा सुख है? सात्विक रूप से पता नहीं लगाना चाहिए कि इसमें कोई सुख नहीं दिखता? बल्कि मूर्खता हो जाती है, फूलिशनेस हो जाती है। विषय से दूर रहा तो भगवान बनकर खड़ा रहेगा और विषय में यदि लटका तो अधोगति में नर्क में जाने पर भी अंत नहीं आएगा, ऐसा हमने ज्ञान से देखा है। अब आपको विश्वास हो गया न? आज आपको ऐसा ज्ञान हो गया न कि 'यह गलत हुआ है ?' यह कोई ऐसा-वैसा ज्ञान नहीं है। 'यह गलत है' ऐसा ज्ञान हुआ, उसी को हम 'ज्ञान' कहते हैं। वापस पलटने लगा मतलब काम ही निकाल लेगा। यह तो, कोई दीया धरनेवाला होना चाहिए, कोई दीया धरनेवाला नहीं हो तो क्या होगा?
एकांत शैय्यासन ___ चौबीसों तीर्थंकरों ने कहा है 'एकांत शैय्यासन!' ऐसा क्यों कहा? दो प्रकृतियाँ इकट्ठी हुई तो वह शैय्यासन के लिए किसी काम का नहीं है। क्योंकि दो प्रकृतियाँ, पूर्ण रूप से एकाकार या 'एडजस्टेबल' नहीं हो सकतीं, इसलिए 'डिस्एडजस्ट' होती रहेंगी और उससे संसार खड़ा होता रहेगा। इसलिए भगवान ने खोज की थी कि एकांत शैय्यासन और आसन।
दो लोग कभी भी एक नहीं हो सकते। वे चाहे कितना भी करें तो भी एक होंगे क्या? फिर जब भी अलग होंगे तो फिर दो नहीं हो जाएँगे? फिर 'मैं' और 'तू' करते रहेंगे न? 'मैं ही हूँ, मैं ही हूँ' ऐसा नहीं करते? इसीलिए 'ज्ञानीपुरुष' एकांत शैय्यासन खोजते हैं। कभी किसी दिन दो से एक हो जाएंगे, लेकिन हमेशा एक नहीं रह पाते और फिर बखेड़ा होगा, उसके बजाय एक सिंगल बिछौना बिछा दो, ताकि झंझट ही मिट जाए!
और यदि किसी को 'जेल' हुई हो, तो सज़ा तो पूरी करनी ही पड़ेगी न? पच्चीस साल की सज़ा हुई हो तो पच्चीस साल और चालीस साल की हो तो चालीस साल। पूरे तो करने ही पड़ेंगे न? लेकिन भावना कैसी