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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
शीलवान को देखते ही हाथी, सिंह वगैरह सभी भाग जाते हैं।
इस जगत् का एक नियम इतना सुंदर है कि पूरे कमरे में सभी जगह साँप बिछे हुए हों, एक इंच भी खाली नहीं हो, फिर भी यदि उस कमरे में अँधेरे में शीलवान प्रवेश करे तो साँप उस शीलवान को छूएँगे नहीं। जगत् इतना नियमबद्ध है। क्योंकि साँप को शील का इतना ज्यादा ताप लगता है कि दस फुट की दूरी से ही सभी साँप इधर-उधर हो जाते हैं और एक-दूसरे पर चढ़ जाते हैं ! अतः शीलवान को साँप तक भी नहीं छूते। उनकी मौजूदगी से वातारवण ही ऐसा हो जाता है कि साँप भी हट जाते हैं। साँप यदि उसे कभी थोड़ा छू जाए तो साँप को जलन पैदा हो जाएगी और वह मर जाएगा। शीलवान का ताप इतना अधिक होता है। साँप को खुद को जलन नहीं हो, दुःख नहीं हो, इसलिए वहाँ से हट जाते हैं। शील का प्रभाव ऐसा है कि कोई भी उसका नाम नहीं दे।
शीलवान तो सबसे क़ीमती रत्न कहलाता है। ऐसा शीलवान मैं भी नहीं था और आज भी नहीं हूँ। शीलवान तो व्यवहार चारित्र का सबसे ऊँचा पद है।
इस काल में शीलवान नहीं हैं। यदि इस काल में शीलवान होता न, यदि एक ही शीलवान इस दुनिया में होता तो, आज सारी दुनिया में बहुत ही सुख होता।
प्रश्नकर्ता : पुराने ज़माने में कोई शीलवान पुरुष हुए हों तो उनका उदाहरण दीजिए न?
दादाश्री : शीलवान, कोई ऐतिहासिक चीज़ नहीं है। कभी किसी बार कोई एकाध होता था। कोई आठ आने शीलवान, कोई बारह आने शीलवान होता है बाकी पूर्ण रूप से सोलह आने शीलवान तो शायद ही कोई होता है कभी। सोलह आने शीलवान तो जब साँप इधर-उधर हो जाएँ, उसे कहा जाता है। वीतराग पूर्ण शीलवान कहे जाते हैं, लेकिन तब उनके लिए शीलवान जैसा विशेषण रहता ही नहीं।