________________
१७८
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
अभी तो निरा कु-शील का ही वातावरण हो गया है। लेकिन शीलवान बनना पड़ेगा, सच्चा बनना पड़ेगा, सभी तरह से ऑल राइट हो जाना पड़ेगा। बाकी सबकुछ खाओ-पीओ, इत्र लगाओ इन सभी में पब्लिक को हर्ज नहीं है, हर्ज केवल कु-शीलता का ही है। किसी को ज़रा सा भी, किंचित् मात्र दु:ख नहीं पहुँचाए, अपने ऐसे विचार, भाव, और वर्तन होने चाहिए और बहुत ही उच्च चारित्र होना चाहिए।
जगत् जीतने के लिए एक ही चाबी बताता हूँ कि, यदि विषय विषयरूप नहीं बने तो सारा जगत् जीत जाएगा। क्योंकि वह व्यक्ति फिर शीलवान माना जाएगा। जगत् का परिवर्तन कर सकेगा। आपका शील देखकर ही सामनेवाले में परिवर्तन हो जाएगा। आपमें जितना शील होगा, उतना सामनेवाले में परिवर्तन हो सकेगा, वर्ना किसी में परिवर्तन हो ही नहीं पाएगा। बल्कि विपरीत होगा। अभी तो शील ही सारा नष्ट हो गया है न!
प्रश्नकर्ता : जो व्यक्ति पहले चरित्रहीन हो, क्या वह मनुष्य शीलवान बन सकता है?
दादाश्री : हाँ, क्यों नहीं? जब से यह कर्जा.... एक बार दिवालिया हो जाने के बाद यदि वह कर्ज चुका दिया तो फिर कर्जा गया। बाद में वह साहुकार भी बन सकता है न! जब तक जीवित है, तब तक हो सकता है, जितनी मुद्दत हो उतनी, लेकिन एकदम से शीलवान नहीं बन सकता।
प्रश्नकर्ता : बुरे कामों का कर्ज़ कैसे चुका सकते हैं ?
दादाश्री : कर्ज तो चढ़ गया है। लेकिन अब नये सिरे से सब इंतज़ाम कर रहा है न?
प्रश्नकर्ता : पश्चाताप से हो सकता है। दादाश्री : नये सिरे से इंतज़ाम कर देगा न!
शीलवान बनाने के लिए ही हम यह सत्संग करवाते हैं न! मोक्ष की क्या जल्दी है ? किसलिए मोक्ष की जल्दी है ? हम मोक्ष स्वरूप ही