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चारित्र का प्रभाव
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आगे चलकर चारित्र कहलाता है। प्रभाव बहुत ऊँचा हो, तब चारित्रवान कहलाता है।
मनुष्य के चारित्रबल जितनी क़ीमती अन्य कोई चीज़ है ही नहीं, लेकिन उसकी क़ीमत ही नहीं समझता न! यह तो मनुष्य का चारित्रबल है, ऐसा कि जिससे बाघ भी घबराए! लेकिन समझ ही नहीं हो तो क्या हो सकता है?
प्रश्नकर्ता : शीलवान में कौन से विशेष गुण होते हैं?
दादाश्री : शीलवान, वह ऐसे चारित्रवान की ओर जाता है। और सिर्फ चारित्रवान ही नहीं, अन्य बहुत से गुण भी हों, तब शीलवान कहलाता
यानी शीलवान के सामने सभी लोग रेग्युलर (नियमनिष्ठ) रहते हैं। शीलवान का प्रभाव और चारित्र वगैरह तो बहुत उच्च कोटि का होता है!
सिर्फ ब्रह्मचर्य को ही चारित्र नहीं कहा जाता। चारित्र तो, यदि शीलवान हो, तब चारित्र कहलाता है। अत: शील का तो बहुत महात्म्य है। शील में ब्रह्मचर्य का समावेश तो हो ही गया, लेकिन ब्रह्मचर्य सहित इतने गुण और होने चाहिए। यानी जिसकी वाणी से किसी को दुःख नहीं हो, जिसके वर्तन से किसी को किंचित् मात्र दु:ख नहीं हो, जिसका मन किसी के लिए बुरा नहीं सोचे, शीलवान व्यक्ति ऐसा होता है। चारित्रवान किसे कहते हैं ? जो किसी को क्रोध से भी दुःख नहीं पहुँचाता, किसी को लोभ से दु:ख नहीं पहुँचाता, मान को लेकर किसी का तिरस्कार नहीं करता, कपट से किसी को दुःख नहीं देता, वह चारित्रवान कहलाता है। चारित्रवान की तो बहुत क़ीमत! लेकिन यह तो खुद ने हर तरह से खुद का दिवाला घोषित किया है और उसी का दुःख है। दिवाला घोषित करते हैं न लोग? क्रोध, लोभ, कपट, मान की वजह से दिवाला घोषित करते हैं। इसलिए फिर चारित्र खत्म हो जाता है। किसी प्रकार से दिवाला नहीं निकले, तभी वह चारित्रवान कहलाएगा, शीलवान कहलाएगा। शीलवान को देखते ही आनंद होता है।