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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
आँखों से देखा और जाना जा सके, वह चारत्र नहीं कहलाता, बुद्धि से देखाजाना जा सके वह भी चारित्र नहीं कहलाता। उसमें तो आँखों का उपयोग नहीं होता, मन का उपयोग नहीं होता, बुद्धि का उपयोग नहीं होती। उसके बाद जो भी देखे-जाने, वह निश्चय चारित्र है।
लेकिन इसमें जल्दबाजी करने जैसा नहीं है। यह 'दर्शन' तक पहुँचा है, इतना भी बहुत हो गया न! खुद के दोष दिखाई दें और उन सभी के प्रतिक्रमण हों, तो काफी है!
प्रश्नकर्ता : व्यवहार चारित्र के लिए, विशेष रूप से और क्या करना
दादाश्री : कुछ नहीं। व्यवहार चारित्र के लिए और क्या करना है? ज्ञानी की आज्ञा में रहना, वह व्यवहार चारित्र है और उसमें भी यदि ब्रह्मचर्य सम्मलित हो तो अति उत्तम। तभी वास्तव में चारित्र कहलाएगा। तब तक पूरी तरह से व्यवहार चारित्र नहीं कहलाता। व्यवहार चारित्र की पूर्णाहुति नहीं होती। जब ब्रह्मचर्यव्रत आ जाए, तब 'व्यवहार चारित्र' की पूर्णाहुति होती है।
शीलवान को देखकर जगत् 'प्रभावित' होगा ही
जिन लोगों में चारित्र नहीं हो, वे लोग जब चारित्रवान को देखते हैं तो तुरंत ही प्रभावित हो जाते हैं। जिस बारे में खुद खराब है, उस बारे में सामनेवाले के अच्छे गुण देखे तो तुरंत ही प्रभावित हो जाता है। क्रोधी व्यक्ति अन्य किसी शांत पुरुष को देखे तो भी प्रभावित हो जाता है। इस जगत् में आपका प्रभाव पड़ने लगे और तब आप, आप विषय खोजो तो फिर क्या होगा? शिक्षक यदि विद्यार्थी से सब्जी मँगवाए, और कुछ मँगवाए तो फिर उसका प्रभाव रहेगा क्या? इसी को विषय कहा है। शीलवान का ऐसा प्रभाव पड़ता है कि कोई गालियाँ देने का तय करके आया हो, तो भी उसके सामने आते ही जीभ सिल जाती है। आत्मा का ऐसा प्रभाव है। प्रभाव यानी क्या कि उसे देखने से ही लोगों को उच्च भाव होते हैं। इस ज्ञान के बाद प्रभाव बढ़ता है। यह प्रभाव