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लो व्रत का ट्रायल
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जो दोष हैं, उसे जानेंगे, तो कंट्रोलेबल हो सकेगा।
एक भाई कहने लगे, 'दादाजी आनंद आत्मा का है या फिर विषय का आनंद है, वह समझ में नहीं आता, उसके लिए क्या करें? आनंद तो मुझे रहता है, लेकिन यह विषय का है या आत्मा का, उन दोनों में फर्क नहीं कर पाता मैं।' इस पर मैंने कहा, 'हम चाय और भूसा साथ में खाएँ, तो वह स्वाद चाय में से आ रहा है या भूसे में से आ रहा है, वह पता नहीं चलेगा। इसलिए दोनों में से एक बंद करना पड़ेगा। आत्मा का आनंद तो आप बंद नहीं कर सकते, अतः आप विषय का आनंद बंद करोगे तो आपको आत्मा के उस आनंद की अनुभूति होगी। मान लो आज से बंद नहीं हो सकता, हर एक की अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार है, लेकिन वह बंद करोगे तब समझ में आएगा। वर्ना भूसा और चाय दोनों साथसाथ खाते रहो तो उनमें से किसका स्वाद आ रहा है, वह क्या पता चलेगा?' तब फिर उस व्यक्ति ने मुझसे क्या कहा कि 'मैं कब से बंद करूँ?' मैंने कहा, 'हम अमरीका जाएँ उस दिन से तुझे बंद करना है और अमरीका से लौट आएँ उस दिन से शुरू।' चार ही महीनों के लिए। कोई हर्ज है इसमें? पता नहीं चलेगा चार महीनों में?
आपको पता चलता है कि यह आनंद कहाँ से आ रहा है? अभी भी लोग द्विधा में हैं। अभी भी इस ज्ञान के बाद आनंद तो बहुत आता ही है, लेकिन उसे ऐसा समझ में आ जाता है कि जैसा पहले आता था, यह वैसा ही है न! मैंने कहा, 'नहीं, वह तो तू जब अलग हो जाएगा, तब। भूसा और चाय एक साथ नहीं फाँकेगा, तब पता चलेगा तुझे कि या तो चाय पी ले, या फिर भूसा खा ले। तब फिर चाय के स्पेसिफिकेशन पता चलेंगे।'
विषय में दुःख है ऐसा तो समझते ही नहीं। नो टेन्शन जैसी स्थिति। इसका मतलब यह नहीं कि ज़बरदस्ती करना है, लेकिन कभी पाँच दिन ट्रायल लेने में हर्ज क्या है ? दो दिन का है, अगर पाँच दिन नहीं हो सके तो। जानवर तो नौ महीने का लेते हैं लेकिन इन्सान दो दिन, चार दिन का तो ले सकता है? तो ट्रायल लो न!