________________
लो व्रत का ट्रायल
१५५
की आज्ञा से शुरू। ज़्यादा नहीं हो पाए तो सालभर के लिए प्रयोग करके देखो, ट्रायल। मैं ट्रायल ही देता हूँ। क्योंकि फिर शायद बेचारों से कुछ भूल हो जाए तो! बाद में फिर से 'एक्सटेन्शन' करवाते रहना।
ऐसी कोई जल्दी नहीं है, अभी भी सोच-समझकर आगे बढ़ना। यह कुएँ में छलाँग लगाने जैसी चीज़ नहीं है। सोचकर करना, ज़रा ज़्यादा सोचना। वह भी सोचना, यह तो बिना कुछ सोचे ऐसे ही पड़े रहना इसका अर्थ क्या है? कर्ज़ बढ़ता ही जा रहा है निरंतर। सोचो। मैंने आपको छूट दे रखी है, ऐसा नहीं है। यह कुछ राह पर आ जाए तो अच्छा है। यह ज्ञान फिर से मिलेगा नहीं, ऐसा! आत्मा अलग हो गया है, हंड्रेड परसेन्ट और रात-दिन भीतर गवाही देता है और चेतावनी देता ही रहता है। क्या वह कम गवाही कहलाएगी? इसलिए सावधान हो जाओ अब! बहुत दिन गए!
प्रश्नकर्ता : हम दोनों की थोड़ी-थोड़ी भावना हो गई है।
दादाश्री : बहुत अच्छा। यह तो निरी गंदगी है। निरा दुःख। देखने से बदबू और छूने से भी बदबू। सभी में बदबू, बदबू और बदबू। संडास ही है न वह तो! गंदगी पसंद नहीं है, लेकिन कोई चारा ही नहीं है न! भाव करने में हर्ज नहीं है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन उनकी इच्छा ऐसी है कि दादाजी से माँगे बगैर छूट जाना चाहिए।
दादाश्री : वह उत्तम है। नुकसान उठाने की आदत हो गई हो तो वह छूट जाएगी या नहीं छूट जाएगी, मुझे बताए बगैर? या फिर मुझसे पूछने से ही छूटेगी?
प्रश्नकर्ता : छूट जाएगी।
दादाश्री : तो, यह सब नुकसान उठाना छोड़ दो तो अच्छा। मुझे बताने की क्या ज़रूरत है?
अनुभव करने के लिए, हम आपसे छ: महीनों का उपवास करने को कहते हैं और फिर सालभर के लिए एक्सटेन्शन करवा लेते हैं ये लोग तो।