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आलोचना से ही जोखिम टले व्रतभंग के
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यह तो वकालत करके अर्थ का अनर्थ कर देते हैं कि यह सब 'व्यवस्थित' ही है न! लेकिन कितना बड़ा जोखिम है? अणहक्क के विषय यानी कितना बड़ा जोखिम! आप जिस औरत से शादी करो, वही आपके हक़ का विषय है। दूसरों के हक़ का विषय आपके लिए ठीक नहीं है। सोचन भी नहीं चाहिए, दृष्टि भी नहीं डालनी चाहिए, तब जाकर हमारा साइन्स खुलेगा! हमारा साइन्स तो इसके आधार पर, ब्रह्मचर्य के बेजमेन्ट पर टिका है!
प्रश्नकर्ता : मेरी दृष्टि तो दूसरी जगह चली जाती है।
दादाश्री : वह दृष्टि दूसरी जगह जाना, वह तेरी पुश ऑन चीज़ है, जबकि यह तो उसी की वकालत की और व्रत का नियम तोड़ा। आज्ञा तोड़ी न? इसलिए यह सारा जोखिम आया है।
निश्चय नहीं टूटे और टूटते ही सावधान नहीं हो जाएँ तो निश्चय दूसरी ओर मुड़ जाता है। आत्मा के संबंध में निश्चय है, वह निश्चय, जिस ओर जाता है, उस ओर मुड़ जाता है।
इस जगत् के कुतुबनुमा से हमें उत्तर में नहीं जाना है। ज्ञानी के कुतुबनुमा से उत्तर में जाना है। जगत् का कुतुबनुमा तो, जो दक्षिण में जा रहा है, उसी को उत्तर कहते हैं। गलत को गलत समझे, और तभी से सच की ओर जाने लगोगे। एक सूक्ष्म ज़हर है और एक दवाई है, खाँसी मिटाने की। दोनों सफेद होती हैं, लेकिन जिस पर पॉइज़न लिखा हुआ हो, उसे हम नहीं छूते क्योंकि 'मर जाएँगे'। ऐसा जानने के बाद छोड़ देंगे या नहीं?
अभी जगत् पोलम्पोल चल रहा है। पैसे भी अणहक्क के और ऐसे ही आते हैं सारे। इसलिए हम उसमें हाथ नहीं डालते। अभी सिर्फ विषय के लिए ही मना करते हैं। क्योंकि पैसे तो जड़ चीज़ हैं और ये तो दोनों चेतन। वह कब दावा कर ले, वह कहा नहीं जा सकता। आप बंद कर दो तो भी वह दावा करेगी न?
प्रश्नकर्ता : यह तो न जाने अंदर क्या हो गया है, वही समझ में