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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
दादाश्री : यदि थोड़े और समय तक भूल नहीं बताई होती, अभी और ऐसे ही चलने दिया होता तो सारा ज्ञान उखाड़कर फेंक दिया होता ! लेकिन तूने थोड़े समय में ही बता दिया इसलिए पकड़ में आ गया। वर्ना वह तो फिर हुल्लड़ मचा देता । इसके बजाय तो व्रत नहीं लेना चाहिए और यदि व्रत लेना हो तो पूर्ण रूप से पालन करना ! जब ऐसा लगे कि पालन नहीं हो पाएगा, तब हमें सबकुछ बता देना । यह तो, एक देश में रहकर और विरोधी देश को मदद करें, उस जैसी बात है सारी !
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विषय घटाने के लिए तो आहार बारह आने कम कर देना चाहिए, पहले स्थूल दबाव कम कर देना चाहिए । फिर सूक्ष्म दबाव कम करना । स्थूल दबाव कम हो जाए उसके बाद सूक्ष्म दबाव कम हो सकते हैं । क्योंकि स्थूल में ही यदि दबाव कम नहीं होगा, तो सूक्ष्म में क्या होगा ?
ये विचार टिकनेवाले नहीं है, क्या तुझे ऐसा लगता है ? पहले तेरे जो विचार थे, तब तुझे ऐसा ही लगता था कि अब मेरे ये विचार हटनेवाले नहीं हैं, लेकिन मैं यह जानता हूँ कि यही विचार वापस बदलेंगे। हमें अभी तेरे विचार टेम्परेरी लगते हैं ! तू इसकी सेटिंग करता रहता है, लेकिन तेरी यह मेहनत बेकार जाएगी। उन दिनों तेरे विचार बहुत स्ट्रोंग थे, लेकिन वे वापस बदल गए! क्योंकि जैसा माल भरा हुआ है, वैसा निकलता रहता
है।
प्रश्नकर्ता: भरे हुए माल को तो अब देखते रहते हैं, लेकिन फिर से नये भाव करते रहें तो ? आप ज्ञानीपुरुष हैं इसलिए देख सकते हैं कि क्या हो रहा है, लेकिन मुझे ऐसा विश्वास नहीं हो रहा कि मेरे विचार बदलेंगे !
दादाश्री : नहीं-नहीं, वह तो पहले भी तुझे ऐसा लगता था कि मेरे विचार बदलनेवाले नहीं है। तूने मुझे बताया भी था कि, 'अब यह ब्रह्मचर्य ही चाहिए, इसके सिवा और कुछ भी नहीं !' लेकिन फिर बदल गया! उन दिनों तुझमें शारीरिक विचित्रता थी, उसने तुझे विषय रोकने में मदद की थी। शरीर ही ऐसा था कि विषय के प्रति तुझे वैराग्य आए और विषय अच्छा नहीं लगे। इस समय शरीर में बदलाव आ गया है इसलिए वापस