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ब्रह्मचर्य का मूल्य, स्पष्टवेदन - आत्मसुख
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स्पष्टवेदन हुआ कि वह परमात्मा ही हो गया कहा जाएगा! जिसे सांसारिक दुःखों का अभाव बरतता है, कपट चला जाता है, तब अंदर स्पष्ट अनुभव होने लगता है! कपट की वजह से अनुभव अस्पष्ट रहता है! जो जितनी हद तक हमारे पास खुलासा करता है, वह उतना ही हमारे साथ अभेद हो जाता है और जितना अभेद हुआ उतना ही स्पष्ट अनुभव होता
आपको आत्मा प्राप्त हुआ है, इसीलिए आपको सत्संग में पड़े रहना चाहिए। सत्संग यानी आत्मा का संग! यहाँ से फिर यदि कुसंग में घुसा कि यह रंग उतर जाएगा। कुसंग का ज़ोर इतना भारी है कि कुसंग में थोडी देर के लिए भी मत जाना और कृपालुदेव ने घर को कैसा कुसंग कहा है? उसे 'काजल कोठरी' कहा है! अब घर में रहना और असंग रहना, उसके लिए तो जागृति रखनी पड़ेगी। हमारे शब्दों की जागृति रखनी पड़ेगी। हमारी आज्ञा का पालन करे तभी घर में रहा जा सकेगा। इसके अलावा और कब असर नहीं होगा? जब स्पष्टवेदन हो जाएगा, तब असर नहीं होगा और स्पष्टवेदन कब होगा कि जब 'संसारी संग' 'प्रसंग' नहीं रहेगा तब! 'संसारी संग' में एतराज़ नहीं है, लेकिन 'प्रसंग' में एतराज़ है। तब तक 'स्पष्टवेदन' नहीं हो पाएगा। संग तो इस शरीर का है ही, लेकिन फिर प्रसंग तो, यदि अकेले ऐसे चैन से बैठे रहना तो भी नहीं रह पाए। हमें तो यह संग ही बोझ समान हो गया है तो फिर प्रसंग करने कहाँ जाएँ? यह संग ही अंदर से आवाज़ देता है, 'ढाई बज गए, अभी तक चाय नहीं आई!' है खुद असंग और पड़ा है संग-प्रसंग में।