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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
निरालंब आनंद निराला सबसे बड़ी तकलीफ तो बाहर सभी जगह खराब दृष्टि रखने में है। दूसरा, उससे आगे इसमें क्या करना चाहिए कि जैसे स्कूल में साल में डेढ़ महीने की छुट्टी होती है, उसी तरह इस विषय में यदि छ: महीने की छुट्टी ले ले तो उसे पता चल जाएगा कि यह सुख कहाँ से आ रहा है? अतः उसे सुख मिलता है, यह तो तय है लेकिन कसौटी नहीं हो पाती कि इनमें से सच्चा सुख कौन सा है? हमें देखो न, चौबीसों घंटे रूम में अकेले बिठाकर रखे न, तब भी वही आनंद रहता है। साथ में कोई एकाध व्यक्ति हो तो भी वही आनंद रहता है और लाखों लोग हों तो भी वही आनंद रहता है। उसका क्या कारण है ? हमें निरालंब सुख उत्पन्न होता है, अवलंबन नहीं चाहिए। सारा जगत्, जीवमात्र परस्पर है, इसलिए एकदूसरे का अवलंबन चाहिए। इसीलिए तो इन लोगों ने शादी की खोज की थी कि शादी करो ताकि पारस्परिक अवलंबन मिलता रहे।
'मैं शुद्धात्मा हूँ', यह शब्द का अवलंबन है! लेकिन वह प्रवेश के लिए हरी अँडी है और सबसे अंतिम निरालंब आत्मा, उसे शब्द का या अन्य कोई भी अवलंबन नहीं है, ऐसा निरालंब आत्मा! वहाँ तक अब गाड़ी जाएगी! लेकिन एकबार शब्दावलंबन से गाड़ी चलनी शुरू हो जानी चाहिए
और वह शब्दावलंबनवाला शुद्धात्मा अनुभव भी देता है ! अतः पूछने जैसा कुछ भी नहीं है। सिर्फ आत्मा ही जानने योग्य है। जो 'लक्ष्य' में आया, वह आत्मा जानने योग्य है। यह मार्ग सरल है, सहज है, सुगम है। खुद अपने आपको लक्ष्य में रखकर सब पूछना, पुद्गल का ध्यान रखने की ज़रूरत नहीं है। आत्मा आपके पास है, उसका ध्यान रखना है। आत्मा का स्पष्ट अनुभव करना हो तो छ:-बारह महीने विषय बंद रखना। ये सारे अनुभव तो होते रहते हैं, लेकिन दोनों साथ रहेंगे तो पता नहीं चलेगा कि 'सुगंधी' कहाँ से आ रही है? हमारी आज्ञा पर अमल करने के बाद प्रतिक्रमण करने की शुरूआत करो, उसके बाद ही वह विषय छूटेगा। हमारा यह ज्ञान, ये जो-जो बातें बतलाते हैं न, उन सभी का अमल करने के बाद महीने-महीनेभर दोषों के प्रतिक्रमण करो। ताकि हमें अपने आपमें