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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
हूँ', वह भान भी भूल जाता है न! तो फिर आत्मा तो भूल ही जाएगा न! इसलिए भगवान ने डरने को कहा है। जिसे संपूर्ण अनुभवज्ञान हो जाए, उसे स्पर्श नहीं करता । फिर भी भगवान के ज्ञान को भी उखाड़कर बाहर फेंक दे! उसमें इतना भारी जोखिम है ।
यदि पालन करने योग्य एकाध ही कानून हो तो मैं कहूँगा कि ब्रह्मचर्य पालन करना ! इच्छाएँ यदि विराम पाएँ तो अंतर का वैभव प्रकट होगा। आत्मा तो ब्रह्मचारी ही है । मेरा दिया हुआ आत्मा ब्रह्मचारी ही है । अब ‘आपको' चंदूभाई से कहना है कि 'भाई, तबियत अच्छी रखनी हो, संसार शांति से पूरा करना हो, तब यदि हो सके तो छः- बारह महीने का ब्रह्मचर्यव्रत लिया जा सके तो अच्छा रहेगा । उससे शरीर स्वस्थ रहेगा ।' यह तो ढाँचा ही 'लूज़' हो गया है।
ब्रह्मचर्यव्रत लेकर तोड़ना गुनाह है। उसके बजाय लेना ही नहीं और अपनी तरह से अंदर उपशम करते रहो तो बल्कि बेहतर होगा। खुद घर पर रहकर ही सारे प्रयोग कर सकते हैं । जिसे मोक्ष में ही जाना है वह खुद का रास्ता नहीं चूकता, उसी को ज्ञानी कहते हैं । चाहे कितने भी बाहर से लालच आएँ, फिर भी खुद का रास्ता नहीं चूके।
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अंत समय भी लेना ब्रह्मचर्यव्रत
ऐसा कोई नियम नहीं है कि जवानी में ही ब्रह्मचर्य होना चाहिए, जवानी का ब्रह्मचर्य, वह तो बहुत ऊँची चीज़ है। लेकिन मैं तो कहता हूँ कभी भी ले लेना । अरे! वृद्धावस्था हो और मरने से दस दिन पहले ब्रह्मचर्यव्रत ले तो भी कल्याण हो जाएगा और वह ब्रह्मचर्यव्रत भी ज्ञानी के हाथों होना चाहिए । जो सर्वांग ब्रह्मचारी हैं, ऐसे ज्ञानी के हाथों ही व्रत दिया जाना चाहिए । इसमें फिर ऐसा नहीं है कि व्रत ले ही लेना चाहिए, इसमें केवल अपनी भावना चाहिए । करना चाहिए कहते हैं लेकिन करने से होता नहीं है। यदि आप आज ऐसा कहें कि मुझे भी ब्रह्मचर्यव्रत लेना है, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता। भावना करते रहना चाहिए तो कभी उदय में आएगा और जब उदय आए तब ब्रह्मचर्यव्रत