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ब्रह्मचर्य का मूल्य, स्पष्टवेदन आत्मसुख
प्रश्नकर्ता : इसमें सच्चा सुख नहीं है, लेकिन एकदम लिमिटेड टाइम के लिए तो है, फिर भी यह छूटता नहीं है न!
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दादाश्री : नहीं, इसमें सुख है ही नहीं ! यह तो मान्यता ही है सिर्फ! यह तो मूरख लोगों की मान्यता ही है ! यह तो, हाथ पर हाथ रगड़े तब सुख लगे तो समझें कि यह बिल्कुल सही सुख है। लेकिन यह विषय तो निरी गंदगी ही है! यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति इस गंदगी का हिसाब लगाए तो उस गंदगी की ओर जाएगा ही नहीं ! अभी यदि केले खाने हों तो उसमें गंदगी नहीं है और उसे खाने में सुख है । लेकिन इसने तो निरी गंदगी को ही सुख माना है । किस हिसाब से मानता है, वह भी समझ में नहीं आता !
उसमें गंदगी नज़र आए तो वह जाए
प्रश्नकर्ता : तो इस विषय से दूर कैसे जा सकते हैं ?
दादाश्री : यदि एकबार ऐसा समझ ले कि यह गंदगी है तो दूर जा सकेगा। बाकी, यह गंदगी है वह भी नहीं समझा है ! अतः पहले ऐसी समझ आनी चाहिए। हमें, ज्ञानियों को तो सब ओपन दिखाई देता है । उसमें क्या-क्या होगा ? तो तुरंत ही मति चारों ओर सभी जगह घूम आती है। अंदर कैसी गंदगी है और क्या-क्या है, वह सब दिखला देती है ! जबकि यह तो विषय हैं ही नहीं । विषय तो जानवरों में होते हैं । यह तो सिर्फ आसक्ति ही है। बाकी विषय तो किसे कहते हैं कि जो परवश होकर करना पड़े। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के आधार पर परवशता से करना पड़े। जो इन बेचारे जानवरों में होता है ।
प्रश्नकर्ता : तो फिर जब परवशता से नहीं करे, तब आसक्ति कहलाएगी ?
दादाश्री : आसक्ति ही कहलाएगी न! ये तो शौक़ से ही करते हैं। दो पलंग मोल लाते हैं और वे एक साथ रख देते हैं, एक बड़ी मच्छरदानी लाते हैं। अरे ! यह भी कोई धंधा है ? मोक्ष में जाना हो तो मोक्ष में जाने के लक्षण होने चाहिए ! मोक्ष में जाने के लक्षण कैसे होते