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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
है। राज़ी-खुशी से उपवास करने में हर्ज नहीं है, भूख को दबाने में हर्ज है। हठाग्रह करने में हर्ज है।
प्रश्नकर्ता : तो अब्रह्मचर्य भी नेचर (कुदरत) के कानून के विरुद्ध है न?
दादाश्री : अब्रह्मचर्य नेचर के विरुद्ध नहीं है। अब्रह्मचर्य में नोर्मेलिटी होनी चाहिए फिर। अब्रह्मचर्य में नोर्मेलिटी चूकने के बाद नेचर के विरुद्ध कहा जाएगा। अब्रह्मचर्य की नोर्मेलिटी किसे कहेंगे? एक पत्नीव्रत होना चाहिए। फिर उसका अनुपात क्या होना चाहिए कि महीने में आठ दिन या फिर चार दिन, वह उसका अनुपात। फिर आपको तुरंत ही फल मिलेगा। नेचर आपका विरोध नहीं करेगा।
प्रश्नकर्ता : नेचर के विरुद्ध जाने का उदाहरण दीजिए न?
दादाश्री : ये हम जो रसभरे आम खाते हैं वह नैचुरल है, लेकिन यदि ज़्यादा मात्रा में खा लें तो वह अन्नैचुरल है। नहीं खाओ तो वह भी अन्नैचुरल है! अनुपात से ज़्यादा खाओ तो वह सब पॉइज़न है। वह अनुपात सही मात्रा में होना चाहिए। नेचर अनुपात को सही मात्रा में रखना चाहता है।
प्रश्नकर्ता : पशुओं को तो कुदरती हेल्प है न?
दादाश्री : नहीं, उनका चलण (नियंत्रण, सत्ताधीश, खुद के अधीन रखना) कुदरती ही है। उनका खुद का चलण है ही नहीं। यह तो लोगों
को ऐसा कुछ भान नहीं है। इन कलियुग के मनुष्यों से तो ये जानवर अच्छे हैं कि नियम में रहते हैं। कलियुग के मनुष्यों के तो नियम ही नहीं हैं न!
प्रश्नकर्ता : ऐसा कैसे हुआ कि जानवर नियम में हैं और मनुष्य नियम में नहीं हैं?
दादाश्री : जानवरों में तो कुदरती है न! इसलिए नियम में ही रहते हैं। सिर्फ ये मनुष्य ही बुद्धिशाली हैं। इसलिए इन्होंने ही यह सारी खोजबीन