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अणहक्क की गुनहगारी
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उस स्त्री के साथ आप जा रहे होंगे तो कोई उँगली नहीं उठाएगा और परस्त्री के साथ जा रहे होंगे तो संसार के लोग भी उँगली उठाएँगे। यानी जहाँ कहीं भी आप पर उँगली उठे, वहाँ नर्कगति है। यदि आपकी दृष्टि बिगड़ी तो अणहक्क का है, और अणहक्क का भोगने की इच्छा की, तो वहाँ पर जानवर गति है।
प्रश्नकर्ता : आपने ऐसा कहा है न कि अणहक्क के विषय नर्क में ले जाते हैं। ऐसा क्यों?
दादाश्री : अणहक्क के विषय में हमेशा कषाय होते हैं और जब कषाय हों तो नर्क में जाना पड़ता है। लेकिन लोगों को इसकी खबर नहीं है, इसलिए फिर डरते नहीं हैं, डर भी नहीं लगता (घबराहट भी नहीं होती) किसी तरह की। आज का यह मनुष्य जन्म तो, पिछले जन्म में कुछ अच्छा किया था, उसका फल है।
प्रश्नकर्ता : स्वर्ग और नर्क, दोनों यहीं पर हैं? उन्हें यहीं पर भुगतना है?
दादाश्री : नहीं, यहाँ पर नहीं हैं। यहाँ पर तो नर्क जैसी चीज़ है ही नहीं। नर्क का यदि मैं वर्णन करूँ और मनुष्य उसे सुने, तो सुनते ही मर जाए, इतने दु:ख हैं! वहाँ पर तो, जिसने भयंकर गुनाह किए हों, उसी को प्रवेश करने देते हैं। यहाँ स्वर्ग-नर्क जैसा कुछ है ही नहीं। यहाँ तो कम पुण्यवालों को कम सुख और ज्यादा पुण्यवालों को ज्यादा सुख है। किसी के पाप हों, तो उसे दुःख मिलता है।
अणहक्क में तो पाँचों महाव्रतों के भंग का दोष समा जाता है। उसमें हिंसा हो जाती है, झूठ होता है, चोरी यानी यह तो सरेआम चोरी कहलाती है। अणहक्क यानी सरेआम चोरी कहलाती है। फिर अब्रह्मचर्य तो है ही
और पाँचवाँ है परिग्रह, यह तो सबसे बड़ा परिग्रह है। हक़ के विषयवालों के लिए मोक्ष है, लेकिन अणहक्क के विषयवालों के लिए मोक्ष नहीं है, ऐसा भगवान ने कहा है।
खुद के हक़ के विषय हों, तो भोगना लेकिन अणहक्क का विचार