________________
[६] विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद
बातें ज्ञान की और वर्तन में क्लेश प्रश्नकर्ता : मैंने कई अच्छे महात्मा देखे हैं, जो बड़ी-बड़ी ज्ञान की बातें करते हैं, लेकिन उनका स्थूल क्लेश नहीं जाता। सूक्ष्म क्लेश तो शायद हो भी सही, वह नहीं जाता लेकिन स्थूल क्लेश अपने से क्यों नहीं जा सकता?
दादाश्री : ऐसा! इन सबका मूल है विषय। यदि दुनिया में सबसे बड़ा फँसाव कोई हो, तो वह विषय है और उसमें कुछ भी सुख नहीं है। सुख में कुछ भी नहीं और उसकी वजह से झगड़े बेहिसाब होते हैं! घर में लड़ाई-झगड़े क्यों होते हैं? दोनों विषयी होते हैं, जानवर जैसे विषयी होते हैं, फिर सारा दिन टकराव होता रहता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आता कि क्लेश और विषय साथ में कैसे हो सकते हैं ? झगड़ा और विषय, दोनों का मेल कैसे बैठेगा? वह मेरे दिमाग़ में नहीं बैठता। मारपीट तक का क्लेश और विषय, उन दोनों का मेल बैठेगा? क्या मनुष्य तब अंधा हो जाता होगा?
दादाश्री : अरे! आमने-सामने मारते हैं।
प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन जब विषय के परमाणु खड़े हों, तब क्या अंधा हो जाता होगा? उन्हें अंदर से याद नहीं आता होगा कि हम मारपीट कर रहे थे?
दादाश्री : मारपीट करें, तभी तो उन्हें विषय का मज़ा आता है न!