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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
उस समय उसके प्रति ध्यान मत देना । अब ऐसे ठगा मत जाना। अपने पास शुद्धात्मा का ज्ञान है, इसलिए संयम रख सकते हैं । यदि संयम नहीं रहा तो पुरुष दब ही जाएगा । अपना मन मत बिगड़ने देना । आपको उसके साथ काम से काम रखना है । सब बिगड़ न जाए, वह देखना है । वह अज्ञानी है इसलिए उल्टा करेगी । ज्ञानी उल्टा नहीं करते और आख़िर में विजय तो सत्य के पक्ष में ही होती है न ? यह वश में करने का उपाय है। दूसरा उपाय नहीं है।
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जो छूट चुके हैं, वे छुड़वा सकते हैं। जो बंधे हुए हैं वे क्या छुड़वाएँगे? घर-घर यही झगड़ा - फसाद है, यह क्या एक ही घर में है ? तेरे जैसा तो कई लोगों के घर में हुआ है। कुछ लोगों का तो विषय छूट गया, कुछ लोग इसमें से निकल जाएँगे । कुछ लोग जीत नहीं सकते, तब मैंने उन्हें विषय छोड़ देने को कहा और अन्य मार्ग दिखाए ! कभी न कभी तो विषय को जीतना ही पड़ेगा न ?
ब्रह्मचर्य का बल नहीं है, इसलिए पुरुषों का स्त्रियों के साथ झंझट होता है। ब्रह्मचर्य का बल हो तो स्त्रियाँ नाम भी नहीं देंगी! बारह महीने नहीं तो छः महीने, लेकिन छः महीने तो तेरा सीधा चलेगा न ? फिर से छ: महीने के लिए ले लेना । फिर तो वह खुद भी कबूल करेगी कि, 'नहीं आप एक-दो साल ठहर जाइए, दो साल बाद हम दोनों साथ में ब्रह्मचर्यव्रत ले लेंगे।' सचमुच में ऐसा हो जाए तो बहुत अच्छा रहेगा। दोनों का इस तरह सही चलने लगे, फिर बाद में हम विधि कर दें तो वह बहुत अच्छा रहता है। पुरुष मायावी नहीं कहलाते, स्त्री जाति मायावी कहलाती है । जब प्रताप नामक गुण प्रकट होता है, तभी स्त्री जाति उस गुण पर आफ़रीन होती है और तभी स्त्री की कपट की खिड़की बंद हो जाती है। इसके अलावा स्त्रियों की कपट की खिड़की बंद होने का अन्य कोई उपाय ही नहीं है।
यह जो आपकी जगत् कल्याण की भावना है, वही आपको विषय पर जीत दिलाएगी। संयम ऐसी चीज़ है कि सारा जगत् सिर झुकाए, संयमधारी होगा तो ।
सच्चा