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विषय वह पाशवता ही
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संग लग जाता है। और ऐसा संग मुझे नहीं लगा है।' 'धन्य हैं चाचाजी इस उम्र में भी!' मैं तो दंग रह गया, तब से मुझे भी यह रोग लग गया। इसके बाद अलग बिस्तर के बारे में समझने लगा और आजकल तो बाप बेटे से कहता है, 'जा डबलबेड ले आ, भले ही तीन सौ डॉलर का मिले।' तब वह ऐसा समझता है कि 'मेरे पिता भी डबलबेड में सोते थे और मेरे दादाजी भी डबलबेड में ही सोते होंगे।' अरे! दादाजी का था ही नहीं ऐसा डबलबेड! ऐसा नहीं बोलना चाहिए, फिर भी देखो बोलता हूँ न? ऐसा नहीं बोलना चाहिए न?
प्रश्नकर्ता : क्यों नहीं?
दादाश्री : किसी को दुःख हो सकता है न! ऐसे बोलते हैं, लेकिन हम तो ज्ञानीपुरुष हैं इसलिए किसी को दुःख नहीं होता। मैं कैसा भी बोलूँ, फिर भी ज्ञानीपुरुष को अंदर वीतरागता रहती है और राग-द्वेष नहीं होते। हमें किसी के प्रति चिढ़ नहीं है, इसलिए हम बोल सकते हैं। लेकिन आप यह समझ गए न? ब्रह्मचर्य के बारे में पूछा इसलिए मुझे खुल्लम्खुला कहना पड़ा वर्ना मैं कहता नहीं हूँ ऐसा।
प्रश्नकर्ता : छूटने का ज्ञान है न? फिर उस शक्ति का उपयोग हो पाएगा न कहीं और?
दादाश्री : हाँ, इसलिए इन सभी से क्या कहता हूँ कि कुछ नियम रखना।
नहीं याद आता आत्मा, बेडरूम में प्रश्नकर्ता : मैं तो अपनी बात कर रहा हूँ कि ज्ञान लेने के बाद, निरंतर केवल यही भाव करता हूँ, फिर भी यह छूटता नहीं है।
दादाश्री : नहीं, लेकिन वह तो पहले का हिसाब है न! इसलिए छुटकारा नहीं हो सकता न?
प्रश्नकर्ता : विषय नहीं है लेकिन हूँफ के लिए। ऐसा होता है कि 'नहीं, साथ में ही सोना है।'