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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
आज तो यहाँ बेडरूम और वहाँ बेडरूम, ऊपर से डबलबेड होते हैं
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उन दिनों कोई भी पुरुष एक बिस्तर में स्त्री के साथ नहीं सोता था, कोई नहीं सोता था । उन दिनों कहावत थी कि जो स्त्री के साथ पूरी रात सो जाए, वह स्त्री जैसा हो जाएगा। उसके पर्याय स्पर्श करते हैं । कोई भी ऐसा नहीं करता था । यह तो किसी अक्लमंद ने खोज की है । तो ये डबलबेड बिकते ही रहते हैं । इससे प्रजा हो गई डाउन । डाउन होने से फ़ायदा क्या हुआ? वे जो तिरस्कार थे, वे सभी चले गए। अब जो डाउन हो चुके हैं, उन्हें चढ़ाने में देर नहीं लगेगी।
माँ-बाप ही कुसंस्कार देते हैं विषय के
अरे! हिन्दुस्तान में तो कहीं डबलबेड होते होंगे ? किस तरह के जानवर हैं? हिन्दुस्तान के स्त्री-पुरुष कभी भी एक साथ एक रूम में रहते ही नहीं थे। हमेशा अलग रूम में ही रहा करते थे । इसके बजाय यह देखो तो सही ! आजकल तो बाप ही बेडरूम बनवा देता है, डबलबेड! तब फिर युवा लोग समझ गए कि यह दुनिया ऐसे ही चलती है। यह सब मैंने देखा हुआ है।
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एक तरह से अच्छा है, ये लड़के सभी यूजलेस निकले हैं न! एकदम झूठा माल, बिल्कुल झूठा माल । लेकिन यदि उनसे कहो कि इस हॉल में पच्चीस लोग सो जाओ तो तुरंत सभी सो जाएँगे । और बाप उन्हें सिखलाता है कि 'जा, डबलबेड ले आ' तो वैसा भी सीख जाते हैं बेचारे । उन्हें ऐसा कुछ नहीं है। आज डबलबेड है तो वैसा और दूसरे दिन नहीं हो तो वैसा । उन्हें ऐसा कुछ नहीं है। यह तो बाप टेढ़े हैं, बरकत नहीं है। ऐसे उल्टे रास्ता पर ले जाते हैं। अभी तो माँ-बाप ही ऐसी व्यवस्था कर देते हैं । अट्ठारह साल का हो जाए तो कहेंगे, 'उसके लिए कमरा बनवाने के बाद उसकी शादी करेंगे।' अरे! रूम बनवाकर सहूलियत कर देता है और ऊपर से डबलबेड ले आता हैं। बेटा ऐसा ही समझता है कि मुझे विरासत में इतना ही करने जैसा है। माँ-बापों को ही भान नहीं है बेचारों को कि कैसे चलना। अतः बेटा भी इस बारे में नियम जानता ही नहीं न ! वह तो यही समझता है, बेटा