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विषय वह पाशवता ही
दस साल तक तो दिगंबर
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हमारे समय की वह प्रजा एक बात में बहुत अच्छी थी । विषय विचार नहीं था। किसी स्त्री के प्रति कुदृष्टि नहीं थी । होते थें, सौ में से पाँच-सात प्रतिशत ऐसे होते भी थे। वे सिर्फ विधवाओं को ही खोज निकालते थे और कुछ नहीं । जिस घर में कोई (पुरुष) रहता नहीं हो, वहाँ। विधवा यानी बिना पति का घर कहलाता था । हम चौदह-पंद्रह साल के हुए, तब तक लड़कियों को देखते तो 'बहन' कहते थे। बहुत दूर की रिश्तेदार हो, फिर भी। तब वातावरण ही ऐसा हुआ करता था क्योंकि दसग्यारह साल के होने तक दिगंबरी की तरह घूमते थे । दस साल का हो तो भी दिगंबर घूमता था । दिगंबर का मतलब समझे ?
प्रश्नकर्ता: हाँ जी, हाँ जी, समझ गया ।
दादाश्री : और उस समय माँ कहती भी थीं, 'अरे दिगंबर, कपड़े पहन, पैगंबर जैसा।' दिगंबर यानी दिशारूपी वस्त्र । इसलिए विषय का विचार ही नहीं आता था । तो झंझट ही नहीं । विषय की जागृति ही नहीं ।
प्रश्नकर्ता : समाज का एक तरह का प्रेशर था, इसलिए ?
दादाश्री : नहीं, समाज का प्रेशर नहीं । माँ-बाप का दृष्टिकोण, संस्कार! तीन साल का बच्चा यह नहीं जानता था कि माँ-बाप के कुछ ऐसे संबंध हैं। इतनी अच्छी सीक्रेसी होती थी ! और जब ऐसा होता था, तब बच्चे दूसरे कमरे में सो रहे होते थे। ऐसे थे माँ-बाप के संस्कार ।