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विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद
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पुरुष भोले! अतः आपको दो-दो, चार-चार महीनों के लिए कंट्रोल रखना पड़ेगा, तो फिर वे अपने आप थक जाती हैं। तब फिर उन्हें कंट्रोल नहीं रहता।
स्त्री जाति कब वश में आती है? पुरुष यदि विषय में बहुत सेन्सिटिव (चंचल) हों, तो वह पुरुष को वश में कर लेती है! लेकिन यदि आप विषयी हों, लेकिन उसमें सेन्सिटिव नहीं हो जाओ तो वह वश में आ जाएगी! यदि वह 'खाने के लिए' बुलाए और आप कहो कि अभी नहीं, दो-तीन दिन के बाद, तो वह आपके वश में रहेगी! वर्ना आप वश में हो जाते हो! यह बात मैं पंद्रह साल की उम्र में ही समझ गया था। कुछ लोग तो विषय की भीख माँगते हैं कि, 'बस आज के दिन!' अरे, विषय की भीख कभी माँगनी चाहिए? फिर तेरी क्या दशा होगी? स्त्री क्या करती है? सवार हो जाती है। सिनेमा देखने गए तो कहेगी, 'बच्चे को उठा लो।' अपने महात्माओं में विषय है, लेकिन विषय की भीख नहीं होती। विषय और विषय की भीख, ये दोनों चीजें अलग हैं। जहाँ मान, कीर्ति, और विषयों की भीख नहीं होती, वहाँ भगवान रहते हैं।
यदि विषय में बहुत सेन्टिमेन्टल नहीं हो तो छूट जाएगा। विषय की भीख नहीं माँगनी चाहिए। कुछ लोग तो विषय की भीख माँगते हैं। अरे! पाँव भी पड़ते हैं! कुछ तो मुझे आकर ऐसा भी कह गए हैं कि, 'मेरी स्त्री विषय के लिए मना करती है, तो अब मैं क्या करूँ?' मैंने कहा कि, 'माँ कहना, तो फिर हाँ कर देगी।' अरे घनचक्कर, तुझे शर्म नहीं आती? मना करे तो क्या उसे 'माँ' कहेगा? 'जाने दे, नहीं चाहिए मुझे', कहना। यह तो खुद माँग करता रहता है फिर स्त्री धमकाती ही रहेगी न? और वह मना करे, वह तो बल्कि अच्छा है। 'भला हुआ छूटी जंजाल।' एकबार उसने मना किया, तो आप जीत गए। फिर वह माँगे तो उसका दावा' सुनना ही मत। फिर कहना, 'तूने मना किया इसलिए मैंने बंद कर दिया है, ताला ही लगा दिया और ताले को चाबी लगा दी।' लेकिन मुआ, ढीला होता है, तो फिर क्या हो?
अभी तो मुझे कितने ही महात्मा आकर बता जाते हैं कि, 'मुझसे