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विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद
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उससे जब मैं पूछता हूँ, तब वह बताता है कि, 'एक भी चिंगारी नहीं, किच-किच नहीं, झंझट नहीं, कुछ भी नहीं, 'स्टेन्ड स्टिल!' (पूर्ण शांति)। मैं फिर पूछता भी हूँ, मैं जानता हूँ कि ऐसा हो जाता है अब। यानी यह विषय के कारण होता है।
प्रश्नकर्ता : लड़ाई तो, शादी करे तभी से शुरू हो जाती है।
दादाश्री : हाँ, लेकिन तब से शुरू होनेवाली उस लड़ाई को हमारे अनुभवी लोगों ने नाम दिया है, तोतामस्ती। वह सचमुच की लड़ाई नहीं है। सचमुच की लड़ाई में तो दूसरे दिन ही अलग हो जाता। लेकिन यह तोतामस्ती है। हमें लगे कि तोता अभी इसे मार डालेगा, मार डालेगा, लेकिन नहीं मारता। काटता है, चोंच मारता है, सबकुछ करता है। यानी इसे तोतामस्ती कही। दूसरे दिन कुछ नहीं होता। दूध फट नहीं गया होता, चाय बन सकती है।
प्रश्नकर्ता : चाय दे, लेकिन पटककर दे, उसका क्या?
दादाश्री : हाँ, कप पटककर देती है, लेकिन फट नहीं जाती। वह कप पटककर दे, लेकिन यदि आप नहीं पटकेंगे तो उसका बंद हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : लेकिन लड़ाई बंद नहीं होती।
दादाश्री : लड़ाई तो यह विषय बंद होने पर ही बंद होती है। ज़रा सा भी लेन-देन किया कि लड़ाई। ज्ञान के अलावा अन्य किसी चीज़ का लेन-देन किया, तो वही लड़ाई और जो सारे सुख लिए हैं, वे जो लिए हैं उनका क्या करना होगा? 'री पे' करना (चुकाना) पड़ेगा। दाँतों से लिए गए सुख दाँतों से री पे करने पड़ेंगे। प्रत्येक से लिए गए सुख री पे करने पड़ेंगे। स्त्री से लिए गए सुख री पे करने पड़ेंगे। जो अभी हर रोज़ री पे कर रहा है। सुख है नहीं न, पुद्गल में सुख है ही नहीं। ऐसा सुख आत्मा में ही होता है कि जिसे रिपे नहीं करना पड़ता।
विषय बंद तो क्लेश बंद जिसे क्लेश नहीं करना, जो क्लेश का पक्ष नहीं लेता, उसे क्लेश