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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : यह बताइए न कि कौन सा हिस्सा बंद कर देना
चाहिए ?
दादाश्री : विकारी विषय बंद कर देना । तो अपने आप ही सब बंद हो जाएगा। उसे लेकर हमेशा यह क्लेश चलता रहता हैं ।
प्रश्नकर्ता : पहले तो हम ऐसा समझते थे कि घर के कामकाज को लेकर टकराव होता होगा । इसलिए घर के कामों में मदद करने बैठें, फिर भी टकराव |
दादाश्री : वे सारे टकराव तो होंगे ही। जब तक यह विकारी चीज़ है, संबंध है तब तक टकराव होंगे। टकराव का मूल यही है । जिसने विषय को जीत लिया, उसे कोई नहीं हरा सकता, कोई उसका नाम भी नहीं दे सकता। ऐसा प्रभाव पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : विषय को नहीं जीत पाते, इसीलिए तो हम आपकी शरण में आए हैं।
दादाश्री : कितने सालों से विषय.... बूढ़े होने आए, फिर भी विषय ? जब देखो तब विषय, विषय और विषय !
प्रश्नकर्ता : विषय बंद करने के बावजूद भी टकराव नहीं टलता, इसलिए तो हम आपके चरणों में आए हैं ।
दादाश्री : हो ही नहीं सकता । जहाँ विषय बंद है वहाँ मैंने देखा कि जितने - जितने पुरुष मज़बूत मन के हैं, पत्नी तो यों उनके कहे में रहती
है।
प्रश्नकर्ता : व्यवहार में जो अहम् रहता है कभी, तो उसके कारण चिनगारियाँ बहुत निकलती हैं।
दादाश्री : वे चिनगारियाँ अहम् की नहीं होतीं। देखने में वे चिनगारियाँ अहम् की लगती हैं, लेकिन विषय के अधीन होती हैं वे । जब विषय नहीं रहता, तब वे नहीं होतीं । विषय बंद हो जाए, तब वह इतिहास ही बंद हो जाता है। यानी ब्रह्मचर्यव्रत लेकर कोई यदि सालभर रहे तो