________________
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
शास्त्रकारों ने तो यहाँ तक कहा है कि यदि आपको संयम रखना हो, तो जहाँ पर पुरुष बैठा हो, उस जगह पर स्त्री को नहीं बैठना चाहिए
और जहाँ स्त्री बैठी हो, वहाँ पर पुरुष को नहीं बैठना चाहिए। कुछ नियम तो खोज निकालना पडेगा न! जीवन जीने की कला तो होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए?
प्रश्नकर्ता : होनी चाहिए।
दादाश्री : कितनी अच्छी नौकरी करते हो, कितनी अच्छी पढ़ाई की है, क्या कमी है? न तो चोरी करते हो, न लुच्चाई करते हो, न ही कालाबाजारी करते हो, फिर भी अंदर शांति नहीं है न, जीवन जीवन नहीं है न!
प्रश्नकर्ता : शांति नहीं है, राइट!
दादाश्री : ऐसा जीवन जीने लायक नहीं है। वह सब आपको यहाँ बता देंगे। इस बार आपको कम्प्लीट, शत प्रतिशत पूर्ण करना है न!
तो स्वमान रखना चाहिए या नहीं रखना चाहिए? ससुर के वहाँ कपड़े की मिल हो और अपनी नौकरी छूट गई हो, तब क्या ससुर के वहाँ जाकर क्या ऐसे ही बैठे रहना चाहिए? वह कुछ कहे नहीं तो क्या आप माँग करोगे कि मुझे जोब दीजिए?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : ससुर जानता है फिर भी मुँह से कहता नहीं। 'छोड़ो फिर, मैं तो चला अपने घर!' कुछ तो स्वमान होना चाहिए या नहीं? कब तक ऐसे जानवर जैसा जीवन जीना है!
एक ही बार यदि आपकी कीमत नहीं रही तो खत्म हो गया। खुद की कीमत ही नहीं रहे, वहाँ तक नहीं जाना है। वह कीमत क्यों नहीं करती? विषयों के लालच के कारण। अतः इसमें तो बहुत ही योगी की तरह रहना चाहिए न?
विषय यानी क्या? भोजन की थाली भी एक विषय है। अब भोजन