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विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद
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आया और आपने कल पूरे दिन उपवास किया था और आज ग्यारह बजे भोजन लाकर रखे, उसमें आम आदि सबकुछ हो और फिर तुरंत उठाकर ले जाए। अब खाया नहीं, उससे पहले तो उठाकर ले जाएँ तो उस घड़ी अंदर परिणाम नहीं बदलें, तब समझना कि 'मुझे इस विषय में हर्ज नहीं है।' विषय के लिए याचकता नहीं होनी चाहिए। लाचारी नहीं होनी चाहिए। ये शब्द समझ में आए ऐसा है?
आपको यह बाउन्ड्री बता देता हूँ। किसी भी चीज़ के लिए याचकता नहीं होनी चाहिए। नहीं मिले तो कहता है, 'जलेबी लाओ न थोड़ी, जलेबी लाओ।' छोड़ न मुए, अनंत जन्मों से जलेबियाँ खाई हैं, फिर भी अभी तक याचकता रखते हो? जिसे लालसा होती है, उसे याचकता होती है। याचकता, वह लाचारी है एक प्रकार की!
ये तो विषय की भीख माँगते हैं, तो वे सभी जानवर से भी गएबीते कहलाएँगे न! खाने की भीख माँग सकते हैं। लेकिन खाने की भीख नहीं माँगते, तीन दिन निकल जाएँ, फिर भी। ऐसे खानदानी लोग विषय की भीख माँगते हैं? मैंने कहा, 'शायद अमरीका में नहीं माँगते होंगे?' तब कहते हैं, 'यह बात ही जाने दीजिए, यहाँ तो बहुत अधिक है, और अधिक मात्रा में है।'
प्रश्नकर्ता : पुरुषों को विषय की भीख होती है, वैसे ही स्त्रियों को भी विषय की भीख होती है न?
दादाश्री: हाँ, इतना यदि पुरुषों को आ जाए न, तो पुरुष जगत् जीत जाएगा! अगर नहीं जीतेगा तो पुरुष यूज़लेस हो जाएगा। पुरुष, पुरुष कब तक कहलाएगा? स्त्री उससे विषय की भीख माँगे, तब तक! अधिक विषयी स्त्री है, फिर भी पुरुष मूरख बन जाता है यह भी आश्चर्य है न!
ऐसा सुना ही नहीं है। इसमें कुछ गलत है, इतना भी नहीं जानते। यह जो भीख माँग रहे हैं, वह भूल हो रही है, इतना भी मालूम नहीं है।
प्रश्नकर्ता : ऐसी भूल तो इन्सान को कभी पता ही नहीं चलती। वर्ना भूल का अगर पता चल जाए तो फिर से वह ऐसा करेगा ही नहीं।