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विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद
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तक! फिर 'मेरी-तेरी' करने लगता है। यह तेरा बैग उठा ले यहाँ से, मेरे बैग में साड़ियाँ क्यों रखीं?' ऐसे झगड़े, जब तक विषय में एक हैं, तभी तक रहते हैं और विषय छूटने के बाद उसके बैग में रखे तो भी हर्ज नहीं। ऐसे झगड़े नहीं होते न फिर? बाद में कोई झगड़ा नहीं न? कितने साल से ब्रह्मचर्यव्रत लिया है?
प्रश्नकर्ता : यों तो नौ साल हो गए।
दादाश्री : यानी उसके बाद कोई झगड़ा-वगड़ा नहीं, कोई झंझट ही नहीं, और गृहस्थी चलती रहती है!
प्रश्नकर्ता : चल ही रही है न, दादाजी। दादाश्री : बेटियों की शादी की, बेटों की शादी हुई, सभी कुछ.... प्रश्नकर्ता : घर में भी नहीं होता अब कुछ भी....
दादाश्री : ऐसा? गृहस्थी अच्छी चले, ऐसा है यह विज्ञान ! हाँ, बेटेबेटियों की शादियाँ करवाता है। अंदर छूता नहीं, निर्लेप रहता है और दुःख तो देखा ही नहीं है। चिंता-विंता देखी नहीं ? बिल्कुल नहीं। नौ सालों से चिंता नहीं देखी न?
प्रश्नकर्ता : ऐसे तो बहुत मुसीबतें आती हैं, लेकिन छूती नहीं।
दादाश्री : आएँगी ज़रूर, वह तो ठीक है, गृहस्थी में है तो आएँगी तो सही। जितना स्पर्श नहीं करता, उतना ही फिर कुछ भी बाधक नहीं होता। सेफसाइड, सदा के लिए सेफसाइड। यहाँ बैठे ही मोक्ष हो गया, फिर अब बचा क्या?
प्रश्नकर्ता : मैं तो कहता हूँ कि यहीं पर मोक्ष का सुख बरतना चाहिए, तभी इसका मज़ा है!
दादाश्री : तभी। सच्चा मोक्ष यहीं बरतना चाहिए। प्रश्नकर्ता : और यहाँ बरतता है इसीलिए कहते हैं न! अब देवलोक