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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
काम से काम है न? आपको संडास जाने की ज़रूरत पड़े तो संडास जाकर आना! जहाँ जाए बगैर चले नहीं, उसका नाम संडास। इसलिए तो ज्ञानियों ने स्पष्ट कहा है न, कि संसार दगा है।
प्रश्नकर्ता : दगा नहीं लगता, वह किस वजह से?
दादाश्री : मोह की वजह से! और कोई कहनेवाला भी नहीं मिला न! लेकिन लाल झंडी दिखाए तो गाड़ी खड़ी रहेगी, वर्ना गाड़ी जाकर नीचे गिरेगी।
शंका की पराकाष्ठा पर समाधान
शंका से ही जगत् खड़ा है। जिस पेड़ को सुखाना है, शंका करके उसी पर पानी छिड़कता हैं, और उससे और ज्यादा शंका होती है। अतः यह जगत् किसी प्रकार की शंका करने जैसा नहीं है।
अब आपको संसार से संबंधित अन्य कोई शंका रहती है? आपकी 'वाइफ' किसी और के साथ बैंच पर बैठी हो और दूर से वह आपके देखने में आए तो आपको क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : अब कुछ नहीं होगा। ऐसे थोड़ा इफेक्ट होगा फिर कुछ नहीं होगा। फिर तो 'व्यवस्थित' है और वह ऋणानुबंध है, ऐसा ध्यान आ जाएगा।
दादाश्री : कितने पक्के हैं! कितना हिसाब लगाया है! और शंका तो नहीं होगी न?
प्रश्नकर्ता : नहीं होगी।
दादाश्री : और ये लोग तो 'वाइफ' ज़रा सा देर से आए, तो भी शंका करते रहते हैं। शंका करने जैसा नहीं है। ऋणानुबंध से बाहर कुछ भी होनेवाला नहीं है। वह घर लौटे, तब उसे समझाना, लेकिन शंका मत करना। शंका तो बल्कि और ज्यादा पानी छिड़केगी। हाँ, चेतावनी ज़रूर देना, लेकिन कोई शंका मत रखना। शंका रखनेवाला मोक्ष खो बैठता है।