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विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद
दादाश्री : तब क्या करे? घर में बैठा रहे? फिर उसकी बुद्धि तुरंत क्या दिखाती है कि सभी जगह घर-घर में ऐसा ही है!
कलह किस कारण से होती है? अब्रह्मचर्य की वजह से। विषय पर कंटोल नहीं होने के कारण है यह सब कलह। वर्ना स्त्री-पुरुषों के बीच कलह क्यों होती? दुनिया में, विषय पर काबू रखनेवालों में कलह नहीं होती, सोचने पर क्या आपको ऐसा लगता है?
विषय में सुख की तुलना में विषय की परवशता के दुःख अधिक हैं! ऐसा जब समझ में आएगा, तब फिर विषय का मोह छूटेगा और तभी स्त्री जाति पर प्रभाव डाल सकेगा और उसके बाद वह प्रभाव निरंतर प्रताप में परिणमित होता रहेगा। वर्ना इस जगत् में बड़े-बड़े महान पुरुषों ने भी स्त्री जाति से मार खाई है। वीतराग ही बात को समझ सके थे! इसलिए उनके प्रताप से ही स्त्रियाँ दूर रहती थीं! वर्ना स्त्री जाति तो ऐसी है कि किसी भी पुरुष को देखते ही देखते लटू बना दे, उनमें ऐसी शक्ति है। उसे ही स्त्री चरित्र कहा है न! स्त्री से तो दूर ही रहना चाहिए। उसे किसी प्रकार से लपेट में मत लेना, वर्ना आप ही उसकी लपेट में आ जाओगे। और यही का यही झंझट कितने जन्मों से हुआ है न!
सबसे ज़्यादा विषयी स्त्री होती है। उससे ज्यादा विषयी नपुसंक होते हैं और पुरुष तो स्त्री से भी कम विषयी होता है। विषय उत्पन्न होने के बाद जो जल्दी से कंट्रोल कर सके, वह कम विषयी कहलाता है। पुरुष जल्दी कंट्रोल कर सकता है। स्त्री कंट्रोल नहीं कर सकती! जितना ज़्यादा विषयी उतनी स्थिरता ज़्यादा, जितना कम विषयी उतनी स्थिरता कम। ये सारे कुदरती नियम हैं। शास्त्रकारों ने तो कहा है कि जिसे नपुसंक लिंग हो, वह दस घंटों तक एक ही जगह पर सोता रहे तो भी खुद के विषय के भाव व्यक्त नहीं करता। स्त्री भी विषय के भाव व्यक्त नहीं करती और पुरुष तो घंटेभर में ही भाव व्यक्त कर देता है!
फिर भी नहीं आता वैराग्य यह तो, वैराग्य ही नहीं आता! अरे, यह विषय प्रिय है या तुझे ये