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अणहक्क के विषयभोग, नर्क का कारण
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पत्नी तो उसे पाठ पढ़ाती है! पुरुष भी स्त्री को पाठ पढ़ाते हैं और स्त्रियाँ भी पुरुषों को पाठ पढ़ाती हैं! फिर भी जीत स्त्रियों की होती है क्योंकि इन पुरुषों में कपट नहीं होता न! इसीलिए पुरुष स्त्रियों से ठगे जाते हैं !
जब तक 'सिन्सयारिटि-मॉरेलिटी' थी, तब तक संसार भोगने योग्य था। अभी तो भयंकर दगाबाज़ी है। इनमें से हर एक को यदि उसकी 'वाइफ' की बात बता दूं तो कोई अपनी 'वाइफ' के पास नहीं जाएगा। मैं सभी के बारे में जानता हूँ लेकिन किसी से कहता-करता नहीं, हालांकि पुरुष भी दगाबाज़ी में पीछे नहीं हैं। लेकिन स्त्री तो निरा कपट का ही कारखाना है! कपट का संग्रहस्थान, अन्यत्र कहीं भी नहीं होता, सिर्फ स्त्री में ही होता है।
यह जो संडास होता है उसमें हर कोई जाता है न? या एक ही व्यक्ति जाता है?
प्रश्नकर्ता : सभी जाते हैं।
दादाश्री : तो सभी जिसमें जाते हैं, वह संडास कहलाता है। अतः जहाँ पर अनेक लोग जाते हों न, उसका नाम संडास! जब तक एक पत्नीव्रत और एक पतिव्रत रहे, तब तक वह सबसे अच्छी चीज़ कहलाती है। तब तक चारित्र कहलाता है, वर्ना फिर संडास कहलाता है। आपके यहाँ संडास में कितने लोग जाते होंगे?
प्रश्नकर्ता : घर के सभी लोग जाते हैं।
दादाश्री : एक ही व्यक्ति नहीं जाता न? अतः फिर दो जाएँ या फिर सभी जाएँ, लेकिन वह संडास कहलाता है।
यह तो जहाँ होटल आया वहाँ खाना खाता है। अरे! खाता-पीता भी है! अतः शंका निकाल देना। शंका से तो हाथ में आया हुआ मोक्ष भी चला जाएगा। आपको ऐसा ही समझ लेना है कि उससे मैंने शादी की है और वह मेरी किरायेदार है! बस, इतना मन में समझ लेना है। फिर चाहे अन्य किसी के भी साथ घूमे तो भी शंका नहीं करनी चाहिए। आपको