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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
नहीं देखता, अन्य स्त्री पर जिसकी दृष्टि नहीं रहती, दृष्टि जाए फिर भी उसके मन में विकारी भाव नहीं होते, विकारी भाव हो जाएँ तो वह खुद बहुत पछतावा करता है, तो इस काल में उसे एक पत्नी होने के बावजूद भी, 'ब्रह्मचर्य में है', ऐसा कहा जाएगा।
आज से तीन हजार साल पहले हिन्दुस्तान में सौ में से नब्बे लोग एक पत्नीव्रत का पालन करते थे। एक पत्नीव्रत और एक पतिव्रत, कितने अच्छे लोग कहलाएँगे वे! जबकि आज तो शायद ही हज़ारों में एक होगा।
इस काल में जिसे परस्त्री का विचार तक नहीं आए और एक ही स्त्री के साथ रहे, फिर भी हम उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं। यदि उसे स्वरूप का ज्ञान नहीं हुआ होगा, फिर भी वह देवगति में जाएगा। बोलो, तब इस देवगति में कितनी सुविधाएँ हैं! दूसरा, यदि आइस्क्रीम खाने की आदत होगी, उसमें भी हर्ज नहीं है। सिनेमा देखने की आदत होगी, उसमें भी हर्ज नहीं है, लेकिन यह स्त्री-पुरुष के विषय संबंध का बड़ा गुनाह है। उसमें भी जिससे शादी की हो, वहाँ तक कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि 'बाउन्ड्री' है। 'बाउन्ड्री' चूकने में आपत्ति है। क्योंकि आप संसारी हो, अतः 'बाउन्ड्री' होनी चाहिए। 'बाउन्ड्री' से बाहर मन भी नहीं चूकना चाहिए, वाणी भी नहीं चूकनी चाहिए, विचार भी नहीं चूकना चाहिए। एक पत्नीव्रत के सर्कल में से विचार बाहर नहीं जाना चाहिए और जाए तो विचार को वापस बुला लेना। यह काल विचित्र है, अत: 'बाउन्ड्री' से बाहर नहीं जाना चाहिए।
यदि कोई इस काल में एक पत्नीव्रतवाला होगा तो भी बहुत उत्तम। मैं उसे कहूँ कि, 'भाई, तुझे ज्ञान लेने की भी ज़रूरत नहीं है। यदि तुझे अन्य स्त्री से संबंधित विचार तक नहीं आता, दृष्टि भी नहीं बिगड़ती और तुझे सपने में भी अन्य स्त्री नहीं आती, तो जा, तुझे ज्ञान लेने की भी ज़रूरत नहीं है।' हमारे एक ही बार आशीर्वाद देने से वह तीसरे जन्म में मोक्ष में चला जाएगा! बिना ज्ञान के! एक पत्नीव्रत, वह क्या कोई ऐसी-वैसी चीज़ है? जिसे एक पत्नीव्रत रहे, उसे इस काल में ब्रह्मचारी ही कहा जाता है। इस काल में मनुष्य एक पत्नीव्रत में रह ही नहीं सकता। हिन्दुस्तान