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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
पुसाता हो तो चार रखो न? कौन मना करता है? लोग भले ही शोर मचाएँ! लेकिन पहली पत्नी को दु:ख नहीं होना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : उसे तो कुदरती रूप से दुःख होगा ही।
दादाश्री : फिर भी किसी को दुःख हो, ऐसा वर्तन नहीं होना चाहिए। और उसमें भी, खुद की स्त्री को दुःख नहीं हो ऐसा पहले से ही देखना चाहिए। क्योंकि आप उसे विश्वास दिलाकर लाए थे। आप शादी से बँधे हैं। प्रोमिस दिया है। प्रोमिस देने के बाद फिर यदि उसे दगा देंगे तो फिर हम हिन्दुस्तान की आर्य प्रजा नहीं कहलाएँगे लेकिन अनाड़ी तो कहलाएँगे न!
प्रश्नकर्ता : तो चार पत्नियाँ क्यों लाते हैं?
दादाश्री : मुसलमानों के क़ुरान में ऐसा लिखा है, क़ुरान का नियम है कि मुसलमान शराब नहीं पीता। शराब का छींटा भी यदि बदन पर पड़ जाए तो उतनी जगह काट दे, सच्चा मुसलमान ऐसा होता है। सच्चा मुसलमान कैसा होता है कि किसी स्त्री पर दृष्टि नहीं बिगाड़े और ज़रूरत पड़े तो दूसरी शादी कर ले, तीसरी कर ले, चार भी कर ले, लेकिन दृष्टि नहीं बिगाड़ता। कितना अच्छा कानून है उनका? लेकिन अब क्या करें? लोग ही ऐसे हो गए हैं इसलिए जहाँ-तहाँ दृष्टि बिगाड़ते हैं।
प्रश्नकर्ता : चार पत्नियाँ लाने पर दृष्टि सुधर जाएगी, इसका कोई विश्वास है क्या?
दादाश्री : नहीं, वे क्या कहना चाहते हैं कि 'तू दृष्टि मत बिगाड़ना।' तू चार पत्नियाँ रख। तब फिर वह खुद तय करता है कि मुझे इतने में ही रहना है। और यहाँ तो उसने तय कर लिया कि एक ही है न मेरी! यानी बाहर अन्यत्र दृष्टि बिगाड़ने कि छूट मिल गई उसे। बाहर दृष्टि बिगाड़ने से क्या होता है कि उसमें कुछ कार्य नहीं होता लेकिन दृष्टि बिगड़ने से बीज पड़ता है और उस बीज में से वृक्ष बनता है। इसलिए हमने इन सभी से कह दिया है कि आपकी दृष्टि बिगड़े तो आप प्रतिक्रमण करना, तो फिर आपको बीज नहीं पड़ेगा। दृष्टि बिगड़ते ही प्रतिक्रमण करना।