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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : लेकिन वे तो ऐसा साहजिक रूप से लेकर आए होते हैं न?
दादाश्री : वह तो, वैसा माल भरा हुआ था और आज ये लोग ऐसा माल भरकर लाए हैं, इसलिए ऐसा निकलता है। लेकिन अब नये सिरे से कैसा भरना, वह तो खुद के अधीन है न!
प्रश्नकर्ता : देवताओं में एक पत्नीव्रत होता होगा क्या?
दादाश्री : एक पत्नीव्रत यानी क्या कि पूरी जिंदगी एक ही देवी के साथ व्यतीत करनी है। लेकिन जब दूसरे देवताओं की देवी देखें, तब मन में ऐसे भाव होता है कि 'हमारीवाली से वह अच्छी है' ऐसा होता ज़रूर है, लेकिन जो है उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : देवगति में संतानों का सवाल नहीं है फिर भी वहाँ विषय तो भोगते ही हैं न?
दादाश्री : वहाँ ऐसा विषय नहीं है। यह तो निरी गंदगी है। देवता तो यहाँ पर खड़े भी नहीं रहेंगे। वहाँ उनका विषय कैसा होता है? सिर्फ देवी आए और वे उन्हें देखें कि उनका विषय पूरा हो जाता है, बस! कुछ देवताओं को तो ऐसा होता है कि दोनों एक दूसरे को छूएँ या दोनों आपस में हाथ दबाकर रखें तो उनका विषय पूरा हो जाता है। देवगण भी जैसेजैसे प्रगति करते जाते हैं, वैसे-वैसे विषय कम होता जाता है। कुछ देवताओं में तो बातचीत करने से ही विषय पूरा हो जाता है। जिन्हें स्त्री का सहवास पसंद है ऐसे भी देवता हैं और जिन्हें स्त्री केवल एक घंटे के लिए आकर मिले तो भी उन्हें बहुत आनंद हो जाता है, ऐसे भी देवता हैं। कुछ ऐसे भी देवता हैं कि जिन्हें स्त्री की ज़रूरत ही नहीं होती। यानी हर तरह के देवता हैं।
ऐसे भी कुछ मनुष्य हैं जिन्हें संडास में बैठना पसंद नहीं है। उन्हें यह गंध ही पसंद नहीं है, तो उनके लिए देवलोक की भूमिका है।