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अणहक्क के विषयभोग, नर्क का कारण
इस काल में तो सभी जगह ऐसा ही रहता है। व्यवहार में भले ही न हो लेकिन मन तो बिगड़ता ही है। उसमें भी स्त्री चरित्र तो निरा कपट और मोह का ही संग्रहस्थान है, इसीलिए तो स्त्री का जन्म मिला है। इसमें सबसे अच्छी बात तो वही है कि जो विषय से छूट चुके हों।
प्रश्नकर्ता : चरित्र में तो ऐसा ही होता है, यह जानते हैं। इसके बावजूद भी मन यदि शंका दिखाए तब तन्मयाकार हो जाते हैं। वहाँ पर कौन सा 'ऐडजस्टमेन्ट' लेना चाहिए?
दादाश्री : आत्मा प्राप्त होने के बाद अन्य में पड़ना ही नहीं चाहिए। यह सब 'फ़ॉरिन डिपार्टमेन्ट' का है। हमें 'होम' में रहना है। आत्मा में रहो न ! ऐसा ज्ञान बार-बार मिले ऐसा नहीं है, इसलिए काम निकाल लेना। एक आदमी को अपनी पत्नी पर शंका होती रहती थी। उसे मैंने कहा कि 'शंका क्यों होती है? तूने देखा, इसलिए शंका होती है? जब नहीं देखा
था, तब क्या ऐसा नहीं होता था?' लोग तो जो पकड़ा जाए उसे चोर कहते हैं, लेकिन जो नहीं पकड़े गए, वे सब भी अंदर से चोर ही हैं। लेकिन ये तो जो पकड़ा जाए, उसी को चोर कहते हैं। अरे! उसे चोर क्यों कह रहा है? वह तो कच्चा था, कम चोरी की इसलिए पकड़ा गया। ज़्यादा चोरी करनेवाले कभी पकड़ में आते होंगे क्या?
प्रश्नकर्ता : लेकिन पकड़े जाएँ तब चोर कहलाएँगे न?
दादाश्री : नहीं। जो कम चोरियाँ करे वह पकड़ा जाता है और पकड़े जाने पर लोग उसे चोर कहते हैं। अरे! चोर तो ये जो नहीं पकड़े जाते, वे हैं। लेकिन यह जगत् तो ऐसा ही है।
इससे वह आदमी मेरा विज्ञान पूर्ण रूप से समझ गया। फिर उसने मुझे कहा है कि, 'अब मेरी वाइफ पर किसी का हाथ फिरे तो भी मैं भड़कूँगा नहीं।' हाँ, ऐसा होना चाहिए। मोक्ष में जाना हो तो ऐसा है, वर्ना अपने आप झगड़ते रहो। इस दूषमकाल में आपकी 'वाइफ' या आपकी स्त्री आपकी हो ही नहीं सकती और ऐसी आशा रखना भी फोकट है। यह दूषमकाल है, इसलिए इस दूषमकाल में तो जितने दिन