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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
जब तक नोर्मेलिटी में होगा तभी तक हक़ का माना जाएगा। और अबव नॉर्मल हो जाएगा तो!
दादाश्री : तब भी हक़ का ही कहा जाएगा, लेकिन वह अणहक्क जितना खराब नहीं कहलाएगा न?
प्रश्नकर्ता : अब कोई दूसरी स्त्री राजी-खुशी हमें खींचे और दोनों की राज़ी-खुशी का सौदा हो तो उसे हक़ का विषय कहा जाएगा या नहीं?
दादाश्री : नहीं, उसीके लिए मना किया गया है न! और इस राज़ीखुशी से ही सब बिगड़ा है न! इस राज़ी-खुशी से आगे बढ़ा, तो वह भयंकर अधोगति में जाने की निशानी है ! फिर वह अधोगति में ही जाएगा। बाकी, अपने घर में नोर्मेलिटी रखे तो वह देवता कहा जाएगा, मनुष्य में भी देवता कहा जाएगा। और अपने घर में अबव नॉर्मल हुआ तो वह सब पशुता कहलाएगी। लेकिन वह अपना गँवाता है, और कुछ नहीं। खुद की दुकान पूरी खाली हो जाएगी, लेकिन वह अणहक्क जैसा जोखिम नहीं कहलाएगा। इन हक़वालों को तो फिर से मनुष्यपन भी मिलेगा और वह मोक्ष के नज़दीक भी जाएगा। एक पत्नीव्रत आख़िरी लिमिट है, अन्य सभी से उत्तम। ऐसी चर्चा हिन्दुस्तान में किसी भी जगह पर नहीं होती।
तेरी ताक़त के अनुसार शादियाँ कर प्रश्नकर्ता : अपने धर्म में एक ही पत्नी का नियम है, लेकिन अपने यहाँ कुछ राजाओं की तीन रानियाँ क्यों थीं?
दादाश्री : ऐसा है न, कुछ लोग तो तीन पत्नियाँ रखते थे। ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत चक्रवर्ती थे, उनकी तेरह सौ रानियाँ थीं। अतः हमारा धर्मशास्त्र क्या कहता है कि शादी करना, लेकिन दृष्टि मत बिगाड़ना। यदि एक शादी से आपको संतोष नहीं हो और अन्य किसी स्त्री पर दृष्टि जाती हो तो दूसरी शादी करना। तीसरी पर दृष्टि जाए तो तीसरी से शादी करना, लेकिन दृष्टि मत बिगाड़ना। इस दृष्टि के बिगड़ने से भयंकर रोग पैदा होते
हैं।