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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
क़ीमत ज़्यादा आँकी गई है। कसौटी का काल है इसलिए दृष्टि भी नहीं बदलनी चाहिए। और यदि बदल जाए तो प्रतिक्रमण दिया हुआ है, उससे साफ कर देना।
सूक्ष्म में भी एक पत्नीव्रत ही चाहिए इस काल में एक पत्नीव्रत को हम ब्रह्मचर्य कहते हैं और तीर्थंकर भगवान के समय में ब्रह्मचर्य का जो फल मिलता था, उसे वही फल प्राप्त होगा, उसकी हम गारन्टी देते हैं।
प्रश्नकर्ता : आपने जो एक पत्नीव्रत कहा है, वह सूक्ष्म में भी रहना चाहिए या सिर्फ स्थूल में? मन तो खिंच जाए, ऐसा है न? ।
दादाश्री : सूक्ष्म में भी रहना चाहिए और शायद कभी मन खिंच भी जाए तो मन से अलग रहना चाहिए और बार-बार उसके प्रतिक्रमण करते रहना चाहिए। मोक्ष में जाने की लिमिट कौन सी? एक पत्नीव्रत
और एक पतिव्रत। एक पत्नीव्रत या एक पतिव्रत का नियम, वह लिमिट कहलाएगा।
अब यदि सारी जिंदगी मन अन्य कहीं नहीं बिगड़ेगा, तो तेरी गाड़ी ठीक से चलेगी। वर्ना फिर....
प्रश्नकर्ता : ठीक है, आपने जैसा बताया उसके अनुसार सिर्फ एक पत्नीव्रत ही, उसके अलावा और कुछ नहीं।
दादाश्री : अन्य कहीं तो दृष्टि भी नहीं बिगड़नी चाहिए और बिगड़ जाए तो तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लेना। अनंत जन्मों से मुक्त होकर मोक्ष में जाना, वह कोई आसान चीज़ नहीं है और पूर्ण ब्रह्मचर्य हो तो उसकी तो बात ही अलग है न!
प्रश्नकर्ता : अभी तो शादी कर रहा हूँ, लेकिन कुछ सालों के बाद तो ब्रह्मचर्य ले सकता हूँ न? ।
दादाश्री : हाँ, दोनों लेने को तैयार हों तो ले सकते हैं। दोनों लेने को तैयार हों तो पाँच साल के बाद भी लिया जा सकता है।