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[५] अणहक्क के विषयभोग, नर्क का कारण
परपुरुष-परस्त्री नर्क का कारण इस विषय को जहर समझा ही नहीं है, इसका जोखिम जाना ही नहीं है और नर्क में जाएँ, ऐसा हो गया है। इसलिए ज़रा वापस मुड़ें तो नर्कगति से बच पाएँगे।
परस्त्री और परपुरुष यानी प्रत्यक्ष नर्क का कारण है। नर्क में जाना हो तो ऐसा सोचना। हमें उसमें हर्ज नहीं है। आपको अनुकूल हो तो नर्क के उन दु:खों का वर्णन करूँ, उसे सुनते ही बुख़ार चढ़ जाएगा तो वहाँ उसे भुगतते समय तेरी क्या दशा होगी? बाकी, खुद की स्त्री के साथ रहने में काई हर्ज नहीं है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन यदि वे दोनों पति-पत्नी हों तब?
दादाश्री : पति-पत्नी को कुदरत ने एक्सेप्ट किया है। उसमें यदि कभी विशेष भाव नहीं होगा, तो हर्ज नहीं है। कुदरत ने उतना चलने दिया है। उतना परिणाम पाप रहित कहा जाएगा। जबकि इसमें (अणहक्क) अन्य बहुत सारे पाप हैं। एक ही बार विषय करने से करोड़ों जीवों की हानि होती है। वह कोई कम पाप है क्या? लेकिन फिर भी वह परस्त्री जैसा बड़ा पाप नहीं कहलाता।
प्रश्नकर्ता : फिर भी उसमें पाप तो है ही न?
दादाश्री : है ही। इसीलिए इन लोगों ने निष्पाप रहने के लिए खोज की न? निष्पाप रहने का उपाय क्या है ? ब्रह्मचर्य में आना चाहिए।