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[४] एक पत्नीव्रत का अर्थ ही ब्रह्मचर्य
जो लोकनिंद्य नहीं, वही लोकपूज्य कलियुग में एक गृहस्थ में सिर्फ कितना विकार होना चाहिए कि उसकी स्त्री तक का ही। गृहस्थधर्म है इसलिए उसकी पत्नी तक ही विकार सीमित हो, तो भगवान ने उसे एक्सेप्ट किया है। एक पत्नीव्रत के लिए भगवान ने छूट दी है। अन्य कहीं दृष्टि भी नहीं बिगड़े, बाहर जाए या कहीं भी जाए लेकिन दृष्टि नहीं बिगड़े, विचार भी नहीं आए, यदि विचार आ जाए तो क्षमा माँग ले, ऐसा एकपत्नीव्रत हो तो भगवान को एतराज़ नहीं है ! वे तो क्या कहते हैं कि, 'इस काल में एक पत्नीव्रत को हम ब्रह्मचर्य कहेंगे और जो लोकनिंद्य नहीं है उसे हम लोकपूज्य कहेंगे।' भगवान कैसे समझदार हैं! इस काल में जहाँ-तहाँ हर जगह लोगों की निंदा ही हो रही है और लोग निंद्यकर्म ही कर रहे हैं न! व्यापार में भी और धर्म में भी, सभी जगह यही धंधा किया है न! उसमें भी कोई अपवाद होगा। अपवाद तो होते ही हैं हमेशा। फिर भी हिन्दुस्तान में तो आज सात्विक विचार के लोग होने लगे हैं। आगे चलकर अच्छा होनेवाला है।
'एक पत्नीव्रत' इस काल का ब्रह्मचर्य ही जिसने शादी की है, उसके लिए तो हमने एक ही नियम दिया है कि तुझे अन्य किसी स्त्री के प्रति दृष्टि नहीं बिगाड़नी है। और शायद कभी ऐसी दृष्टि हो जाए तो प्रतिक्रमण विधि करना और निश्चय करना कि ऐसा फिर से नहीं करूँगा। जो खुद की स्त्री के अलावा अन्य स्त्री की ओर