________________
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
तक नहीं आना चाहिए । हक़ का विषय हो तो उसके लिए हम, दोनों के लिए विधि कर देते हैं । उनके लिए अबंधभाव की विधि रख देते हैं। लेकिन हक़ में भी खुद की राज़ी - खुशी से नहीं होना चाहिए। जैसे पुलिसवाला पकड़कर मांसाहार करवाए, वैसा होना चाहिए ।
प्रश्नकर्ता : यानी खुद के उदयकर्म अनुसार ?
दादाश्री : नहीं । उदयकर्म में तो अणहक्क का भी हो सकता है, लेकिन अणहक्क का होना ही नहीं चाहिए । हक़ का यानी जिसे जगत् के लोग एक्सेप्ट करें, लोग निंदा नहीं करें ऐसा होता है और वह भी खुद की पत्नी के साथ ही होना चाहिए, लोकमान्य होना चाहिए। जो खुद को भी नहीं खटके, भय न लगे । वर्ना अणहक्क में तो भय रहता है, कंकड़ खटके ऐसे खटकता रहता है।
४४
हरहाये पशु की क्या गति ?
इन लोगों को तो कुछ भान ही नहीं होता न ? और हरहाये जैसे होते हैं। हरहाया यानी आप समझे न ? आपने हरहाया देखा है ? हरहाया यानी जिसका हाथ में आया, उसीका खा जाए। इस भैंस बंधु को आप पहचानते हो क्या? वह सभी के खेतों का सफाया ही कर देता है । उसी प्रकार यह जगत् हरहाये भैंसे जैसा है। अरे, तूने सोचा नहीं कि तेरी भी बहन-बेटी है। तू दूसरी जगह से ले रहा है, तो उसके फलस्वरूप तेरा यह जाएगा। आप जैसा धक्का लगाओगे, वैसा ही परिणाम उत्पन्न होगा। यह जगत् बिगाड़ने जैसा नहीं है। बिगड़ गया हो तो उसे सहन कर लेना । वापस नये सिरे से मत बिगाड़ना। यह तो, हरहाये पशु के सामने जो आया सो खा जाता है, तभी फिर लोग उसकी बेटियों को खा जाते हैं । इसकी लोगों को कुछ परवाह ही नहीं है। सभी यदि ऐसे ही हरहाये हो जाएँ तो क्या रहा?
बहुत ही कम लोग ऐसे हैं कि जिन्हें इसका महत्व समझ में आया है। बाकी जब तक नहीं मिला तब तक हरहाया नहीं है ! मिला कि हरहाया होते देर नहीं लगती। यह शोभा नहीं देता हमें! अपने हिन्दुस्तान की कैसी डेवेलप्ड प्रजा ! हमें तो मोक्ष में जाना है !