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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
दादाश्री : ऐसा थोड़ा बहुत हुआ है, लेकिन ज़्यादा नहीं हो पाती न? ‘जब तक वह प्रयोग है, तब तक वह जागृत है', ऐसा नहीं कहा जा सकता। और यदि जागृत होते तो कीचड़ में हाथ ही नहीं डालते। और इस जूठन में हाथ डालता है, तो वह जागृत है ही नहीं, अभान हैं।
अणहक्क का विषय ले जाए नर्क में
निरंतर आज्ञा में रहा जा सके, निरंतर समाधि में रहा जा सके, अपना यह मार्ग ऐसा सरल और समभावी है। आम वगैरह सभी खाने की छूट दी है। सिर्फ एक विषय ही, खुद की स्त्री या खुद के पुरुष के सिवा अन्य विषय नहीं होना चाहिए। और विषय, जो अणहक्क का विषय संबंध है, उससे तो अधोगति को ही निमंत्रण दिया जाता है । और विषय में तो कौन सा सुख है? इन जानवरों को भी उसमें सुख नहीं दिखाई देता । जानवर भी केवल सीज़न में ही विषय में पड़ते हैं, वह भी सीज़नल आवेग होता है (उत्तेजना होती है) । जानवरों को भी यह पसंद नहीं है । इसीलिए तो ये सभी ब्रह्मचर्य व्रत लेकर बैठे हैं । इन्हें विषय में कहीं सुख नहीं दिखाई दिया। जिनके मुँह से दुर्गंध आती हो, जिस शरीर में से रात-दिन निरी गंदगी ही निकलती है, उसके प्रति विषय कैसे उत्पन्न होता होगा?
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यह तो, यदि आज्ञा पालन का सेटिंग कर दे, तो सब ठीक हो जाएगा। खुद की पत्नी के अलावा अन्य कहीं भी अणहक्क के विषय भोगने जाए तो वह नर्कगति का संकेत है।
प्रश्नकर्ता : यह ज्ञान मिला और ऐसे अणहक्क का हो जाए तो जोखिमदारी बढ़ जाएगी न ?
दादाश्री : भयंकर। बाद में ही जोखिमदारी बढ़ती है न! वर्ना पहले भी जोखिमदार तो था ही, जानेवाला ही था जानवर में । उसे कोई परवाह ही नहीं थी न! अब अध्यात्म मार्ग पर आने के बाद यदि ऐसी भूल होती रहे तो क्या होगा ? हो सके उतना आज्ञा पालन करना, आज्ञा में आ जाना। ब्रह्मचर्य में आए और यह ज्ञान है, तो फिर सुख की कमी नहीं रहेगी।
अब्रह्मचर्य तो ऐसा है कि इस जन्म में पत्नी हो, या फिर कोई रखैल