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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
लोग सीधे रहते थे। हमारे समय में तो विचार तक नहीं आते थे। लड़केलड़कियाँ सभी घूमते थे, फिर भी विचार ही नहीं। उस प्रकार के संस्कार थे ही नहीं।
किसी की बेटी जा रही हो और उस पर दृष्टि बिगड़े, तो उस घड़ी तुरंत ही विचार नहीं आना चाहिए कि मेरी बेटी पर कोई दृष्टि बिगाड़े तो मुझे कितना बुरा लगेगा? ऐसा विचार नहीं आना चाहिए?
प्रश्नकर्ता : आता ही है।
दादाश्री : ऐसा विचार आए तभी वह मनुष्य है। और जो दूसरों पर दृष्टि बिगाड़े, उसे मनुष्य कहेंगे ही कैसे? ये सारी अणहक्क की जो चीजें हैं, उन पर दृष्टि नहीं बिगाड़नी चाहिए न? खुद के हक़ की स्त्री हो, तो उसके लिए किसी प्रकार का एतराज़ नहीं है। संसार के लोग भी कहते हैं कि, 'नहीं भाई, यह तो अच्छा है, उसकी स्त्री है।' कंधे पर हाथ रखकर जा रहा हो, तब भी लोग बाद में ऐसे ही टीका-टिप्पणी करते हैं। लेकिन फिर कहेंगे कि, 'भई, उसकी पत्नी है।' तो उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन अणहक्क के लिए तो लोग टीका भी करते हैं और निंदा भी करते हैं। करते हैं या नहीं करते?
और जब जगत् निंदा करे न, तो वहाँ अपना सब, सभी दोष घेर लेते हैं। इसीलिए अणहक्क का बहुत नुकसानदेह है न?
पत्र लिखा लेकिन जब तक पोस्ट नहीं किया, तब तक नीचे एक लाइन लिख सकते हैं कि इस पत्र में पहले, हमने आपको जो-जो गालियाँ दी हैं, उसके लिए हम माँफी माँगते हैं। ऐसा वाक्य नीचे लिख सकते हैं।
प्रश्नकर्ता : उससे ऊपर का सब मिट जाएगा।
दादाश्री : मिट जाएगा। उसका अर्थ सुल्टा हो जाएगा। इसलिए आज एक घंटा प्रतिक्रमण करना अच्छी तरह।
प्रश्नकर्ता : चरित्र भ्रष्टता, वह आत्मा के मार्ग में जाने से रोकती है? दादाश्री : वह तो नर्क में जाने की निशानी है। आपको हक़ कितना है कि जिस स्त्री के साथ आपने शादी की,