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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
सबसे बड़ा जोखिम ही यही है, दूसरा कोई जोखिम है ही नहीं। बाकी, माना हुआ कुछ रहता नहीं। ऐसा आप कहाँ से लाए? माना हुआ।
प्रश्नकर्ता : नहीं, वह तो प्रश्न उठा कि किसी को भाई-बहन की दृष्टि से देखें तो कैसा है ?
दादाश्री : नहीं, उस दृष्टि से देखना ही नहीं चाहिए न! वह दृष्टि तो अब रही ही नहीं न! यानी उस दृष्टि से देखने में 'सेफसाइड' नहीं रही। आपको क्या पता कि यह प्रजा कैसी है? सगे चाचा की बेटी पर भी दृष्टि बिगड़ जाती है! यह तो, घर-घर में माल ही सारा ऐसा हो गया है! कलियुग तो सर्वत्र फैल चुका है।
दृष्टि बिगड़े वहाँ भव जुड़ जाएँ प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य के बारे में बाहर कोई बोलता ही नहीं।
दादाश्री : 'मेरी भी चुप और तेरी भी चुप', ऐसी पोलंपोल चली है। मैं जब ब्रह्मचर्य से संबंधित बात करता हूँ, तब बड़े-बड़े आचार्य महाराजों को आश्चर्य होता है कि, 'इस काल में यदि ऐसा नहीं होगा, तो लोग नर्क में जाएँगे।' क्योंकि पहले तो लोगों की दृष्टि एकाध जगह ही बिगड़ती थी। आज तो जगह-जगह दृष्टि बिगड़ती है ! इसलिए फिर हिसाब चुकाने जाना ही पड़ेगा। यानी वह जहाँ जाए, हल्की जाति में जाए तो उसे भी हलकी जाति में जाना पड़ेगा। और कोई चारा ही नहीं। हिसाब चुकाना ही पड़ेगा। अब इन बेचारों को इसका पता ही नहीं है न कि इसकी ज़िम्मेदारी क्या है? आप समझते हो कि ये लोग ऐसा कर रहे हैं? तो आप भी वैसा ही करते हो, बिच्छू यदि डंक मारे तो तुरंत ही क्यों दूर हो जाते हो? 'इसमें डंक मारनेवाला है' ऐसा कोई दिखानेवाला नहीं है न?
ऊँचे पुरुषों को नीची जाति में क्यों जन्म लेना पड़ता है ? विषयविकार के रोग जिन्हें लगे हैं, वे सभी नीची जाति में जन्म पाते हैं, इसी एक आधार पर। जिन में विषय-विकार कम होते हैं, वे उच्च जाति में, उच्च कुल में और उच्च गौत्र में होते हैं, विषयदोष कम हैं, इसलिए! केवल