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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
यहाँ इन स्त्रियों को, पुरुषों को हर एक को प्रतिक्रमण का साधन दिया है। दृष्टि बिगड़ी कि तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लेना, फिर जोखिमदारी मेरी। क्योंकि आपने प्रतिक्रमण किया, मेरी आज्ञा का पालन किया इसलिए सब जोखिमदारी मेरी। फिर आपको क्या चाहिए? जोखिमदारी दादा ले लें तो, फिर क्या परेशानी है?
अपने ज्ञान के कारण बाहर तो दृष्टि गड़ती ही नहीं और यदि बैठे तो उखाड़कर फिर प्रतिक्रमण कर लेता है। पहले का माल भरा है इसलिए गड़ती ज़रूर है, लेकिन उखाड़कर प्रतिक्रमण कर लेता है।।
प्रश्नकर्ता : दृष्टि नहीं बिगड़े और मन साफ रहे, उसके लिए तो कितनी अधिक जागृति रखनी पड़ेगी?
दादाश्री : ओहोहो, यदि ऐसी जागृति नहीं रखे, तब फिर और करना क्या है? वे फाइलें तो अगले जन्म में भी फिर से चिपकेंगी। पिछले जन्म से चिपकी हुई हैं, उन्हें ज्ञान से उखाड़ फेंक देना है। नई नहीं चिपके, वही देखना है न!
क़ीमत खूबसूरत चमड़ी की । आपने सुंदर कपड़े पहने हों, तो किसी को मोह होगा न? वह किस का गुनाह कहा जाएगा? अतः यदि अपने पर किसी को मोह हुआ तो वह अपना ही गुनाह है! इसलिए वीतराग कहते हैं कि, 'भाग छूटो। अपने कारण सामनेवाले को मोह हो जाए तो वह बेचारा दुःखी होगा, वह अपने निमित्त से ही न!' तब फिर यह वीतरागों का विज्ञान कैसा होगा? तब फिर वीतराग कितने समझदार होंगे? आपको कैसे लगते हैं ? सयाने नहीं लगते? सामनेवाले को दु:ख नहीं हो, इसलिए खुद के बाल नोच डाले।
पहले के साधु-आचार्य महाराज रूपवान होते थे, फिर भी वे सिर के बाल बढ़ाकर, रूप को बढ़ावा नहीं देते थे, रूप कैसे दब जाए, वही ढूँढते रहते थे। दाढ़ी बढ़ाते, लोच करते, ऐसा सब करते थे! लेकिन वे लोग बहुत जागृतिपूर्वक रहते थे। क्योंकि 'मेरे रूप से किसी को दुःख होगा।' वे ऐसा कहते थे।