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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
माना नहीं न! इन बुद्धिशाली लोगों ने ही लिखा है कि विषय सुख, विश्व के सभी सुखों से सर्वश्रेष्ठ है। फिर बुद्धिशालियों ने तो यहाँ तक लिखा कि कदली समान उसके पैर हैं, जंघाएँ ऐसी हैं, फलाँ ऐसा है, इस प्रकार स्त्री का सारा वर्णन किया है। इससे फिर लोग पगला गए। लेकिन क्या किसी ने ऐसा लिखा है कि स्त्री जब संडास जाती है, तब कैसी दिखाई देती है? जो संडास जाता हो, उसके साथ विषय किया ही कैसे जाए? उसे छूआ ही कैसे जाए? यह आम यदि संडास जा रहे होते, तो आम को खा ही नहीं सकते थे न? लेकिन आम तो साफ होते हैं, इसीलिए खा सकते हैं न!
एक ने डंक खाया, खिलाया सभी को यह तो आपको समझाने के लिए कह रहे हैं ताकि आपको संतोष रहे कि हमने जो मार्ग अपनाया है, वह सही है। बाकी, विषय में सुख है ही नहीं, ऐसा तो कोई कहेगा ही नहीं न? सभी लोग विषय में सुख है ऐसा ही सिखाते हैं।
ऐसा है, कि एक व्यक्ति को उँगली में कुछ दर्द हुआ होगा, तब किसी ने कहा कि ततैये की बीट लगाने से ठीक हो जाएगा। इसलिए ततैये की बीट लेने के लिए एक आदमी ने पेड़ के खोखट में हाथ डाला, लेकिन वहाँ अंदर एक बिच्छू बैठा होगा, उसने हाथ डालते ही उसे डंक मार दिया इसलिए बीट नहीं ले पाया और ऊपर से क्या कहा कि, 'मुझसे टूटा नहीं।' तो दूसरे ने कहा, 'तुझसे नहीं टूटा? ला, मैं तोड़ देता हूँ।' फिर दूसरे ने हाथ डाला तो उसे भी बिच्छू ने डंक मारा। तो वह समझ गया कि पहलेवाले ने डंक के बारे में नहीं बताया, इसलिए मुझे भी नहीं बताना है और उसने भी साफ-साफ नहीं बताया। फिर तीसरा गया, उसे भी डंक मारा। इसी तरह बिच्छू सभी को डंक मार ही रहा है, लेकिन कोई कहता नहीं है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन इस संसार के लोगों ने तो, खुद उसमें सुख माना है इसीलिए सबको पकड़-पकड़कर कहते हैं कि इसीमें मज़ा है, चलो!