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दृष्टि दोष के जोखिम
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प्रश्नकर्ता : किसी को सुख भी होता है न?
दादाश्री : जिसे सुख हुआ होगा, उसके परिणाम स्वरूप दुःख आएगा ही। क्योंकि उसका परिणाम दुःखदायी है। अतः यदि उससे सुख हो तो भी उसका परिणाम दुःखदायी है।
आजकल तो लोगों में ऐसा रूप, ऐसा लावण्यभाव नहीं होता इसलिए वह बाल न रखे या दाढ़ी बढ़ाए तो वह बीमार आदमी जैसा दिखाई देगा। दाढ़ी बढ़ गई हो, फिर शरीर भले ही तगड़ा हो लेकिन लोग उसे पूछेगे कि, 'क्यों तबियत खराब हो गई है क्या? क्या हुआ है?' आज के लोगों में रूप होता ही नहीं, जो थोड़ा-बहुत रूप होता है, वह भी अहंकार के कारण कुरूप लगता है! उस रूप, उस लावण्य की तो बात ही अलग होती है! अंग-उपांग सभी संतुलित होते हैं। अंग-उपांग नाटे-मोटे हों, उसे रूप कहेंगे ही कैसे? वह तो सभी संतुलित, 'रेग्युलर स्टेज' में होना चाहिए। वैसा लावण्य इस काल में है ही नहीं न! रूप और लावण्य का आधार तो, उसके क्या-क्या विचार हैं, उस पर है।
सुंदर भोगे जाते हैं, अधिक प्रश्नकर्ता : मोह किसे ज़्यादा होता है ? खूबसूरत चमड़ीवाले को या काली चमड़ीवाले को?
दादाश्री : खूबसूरत चमड़ीवाले को। जिसकी सुंदर चमड़ी हो, तो समझ लेना कि लोगों के हाथों वह ज़्यादा भोगे जाएँगे।
प्रश्नकर्ता : जो खूबसूरत चमड़ीवाले होते हैं, उनके पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) में क्या मोह ज़्यादा भरा हुआ होता है?
दादाश्री : हाँ, तभी चमड़ी सुंदर होती है न! ऐसा है, खूबसूरत चमड़ी यानी गोरी चमड़ी नहीं। हमारे हिन्दुस्तान में गेहुँआ चमड़ी को 'बेस्ट' माना गया है। मेरा और आपका रंग गेहुँआ कहलाता है। उसे 'बेस्ट' रंग कहा है और वही अंतिम प्रकार का रंग है। खूबसूरत चमड़ीवाले तो गोरेगब जैसे होते हैं, वे ज़्यादा मोही होते हैं, इसलिए वे ज़्यादा भोग लिए जाते