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[२] दृष्टि दोष के जोखिम
आँखों का क्या गुनाह ? आजकल तो सब ओपन बाज़ार ही हो गया है न? इसलिए शाम होने तक लगता है कि एक भी सौदा नहीं किया, लेकिन यों ही बारह सौदे लिख दिए होते हैं। केवल देखने से ही सौदे हो जाते हैं! अन्य सौदे तो जो होनेवाले होंगे वे होंगे, लेकिन यह तो मात्र देखने से ही सौदे हो जाते हैं ! हमारा ज्ञान होने पर ऐसा नहीं होता। स्त्री जा रही हो तो उसके अंदर आपको शुद्धात्मा दिखाई देंगे, लेकिन अन्य लोगों को शुद्धात्मा कैसे दिखाई देंगे? देखने से सौदा हो जाता है तुझसे अब? नहीं होता न? और ज्ञान लेने से पहले तो कितने हो जाते थे शाम तक?
प्रश्नकर्ता : दस-पंद्रह हो जाते थे।
दादाश्री : और किसी की शादी में जाए तब? किसी की शादी में गए हों, उस दिन तो आप बहुत कुछ देखते हो न? सौ एक सौदे हो जाते हैं न? यानी ऐसा है यह सब! वह तेरा दोष नहीं है! मनुष्यमात्र से ऐसा हो ही जाता है। क्योंकि आकर्षणवाला देखे तो दृष्टि खिंच ही जाती है। उसमें स्त्रियों को भी ऐसा और पुरुषों को भी ऐसा, आकर्षणवाला देखा कि सौदा हो ही जाता है ! जैसे मार्केट में आकर्षक सब्जी हो तो हम शाम को लेकर ही आते हैं न? नहीं लेनी हो फिर भी ले आते हैं न? कहेंगे, 'बहुत अच्छी सब्ज़ी थी, इसलिए ले आया!' आकर्षक आम दिखाई दें तो ले नहीं आते लोग? अच्छे, सुंदर दिख रहे हों तो? सुंदर दिख रहे हों, तो सौदा कर डालते हैं न? फिर काटकर खाने पर मुँह खट्टा हो जाए तो