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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध)
छोड़ देते हैं। अनेकों ने छोड़ दिया है। यह तो, इस जगत् में सबसे बड़ी अहितकारी चीज़ कोई हो तो सिर्फ यह स्त्री विषय ही है!
अत: यह सब समझना पड़ेगा, ऐसे ही गप्प चलती होगी? कितने अच्छे बेटे और बेटी हैं! अब क्यों आपको.... अच्छे मित्रों की तरह एक होकर मित्रतापूर्वक रहो। और प्रारब्ध में यदि उदय हो, तब दोनों को यदि बुख़ार चढ़े तो दवाई पीना, मैं ऐसा कह रहा हूँ। मैं कुछ गलत कह रहा हूँ या मैं क्या आपका विरोधी हूँ ? सब सोच-समझकर ही लिखा है न मैंने।
प्रश्नकर्ता : ठीक है। सही बात है।
दादाश्री : खाने-पीने में तो हमने कहाँ कोई एतराज़ किया है कि यह मत खाना और वह मत खाना? तो क्या कपड़े पहनने पर कभी एतराज़ किया है? चार गद्दे बिछाओ तो भी कोई एतराज़ है? अन्य कोई झंझट नहीं है। यहाँ पर आप कान में इत्र डालकर आओ तो भी हमें कोई एतराज़ नहीं है। सिर्फ विषय से संबंधित माल ही जोखिमवाला है। इसलिए हम आपको धीरे से समझाते हैं। क्योंकि हमारे शब्द आपको यथार्थ जागृति में रहते नहीं हैं न, कि आत्मा कैसा है? मूल आत्मा कैसा है ? कि 'मन-वचन-काया की तमाम संगी क्रियाओं में भी असंग है।' और वही स्वरूप हमने आपको दिया हुआ है। संगी क्रियाओं में भी खुद असंग है। खुद संगी क्रियाओं का जाननेवाला हैं। अब इतनी अधिक जागृति आपको रहती नहीं है न!
प्रश्नकर्ता : 'मन-वचन-काया की तमाम संगी क्रियाओं में बिल्कुल असंग है', ऐसी स्टेज आती होगी न?
दादाश्री : आती है। वह किसी क्षण ही आती है, प्रतिक्षण नहीं आती। यह ज्ञान है, इसलिए घूमता तो रहता है। किसी क्षण आ जाता है। अपने यहाँ क्या हर रोज़ सूर्यग्रहण होता है? उस जैसा है!
हमने इतने सारे ज्ञान वाक्य दिए हैं कि आपको हर एक अवसर पर एलर्टनेस रहे, तो इतनी अधिक जागृति रहनी चाहिए।