________________
विषय नहीं, लेकिन निडरता वही विष
न? दुनिया में तो हर किसी की दृष्टि अलग ही होती है। अतः किसी एक व्यक्ति के व्यूपोइन्ट से कहा हुआ सही मानना ही नहीं चाहिए।
प्रश्नकर्ता : लेकिन 'व्यवस्थित' के क्षेत्र में विषय आता है या नहीं?
दादाश्री : आता है न! लेकिन अगर बुख़ार चढ़े तो वह 'व्यवस्थित' के क्षेत्र में है, वर्ना 'व्यवस्थित' का दुरुपयोग कर रहे हैं। बुख़ार चढ़ने पर दवाई ले तो हर्ज नहीं है। रोज़ बुख़ार चढ़े तो रोज़ दवाई लेना, लेकिन बुख़ार चढ़े तभी लेनी चाहिए, वर्ना नहीं लेनी चाहिए। आपको यह बात पसंद आई?
प्रश्नकर्ता : ग़ज़ब की बात है दादाजी!
दादाश्री : ऐसा! देखो हमने कोई एतराज़ किया है ? वर्ना एक बार के स्त्री संयोग के लिए भी शास्त्रकारों ने मना किया है। वे तो क्या कहते हैं कि, 'ज़हर खाना, मर जाना, लेकिन स्त्री संयोग मत करना।' जबकि हमने तो आपकी ज़िम्मेदारी ली है, क्योंकि आप आत्मा के प्रति निःशंक हुए हो। सिर्फ इतना ही कहा है न कि 'बुख़ार चढ़े तभी दवाई पीना।' बाकी जगत् में तो सारे विषय ही हैं, सिर्फ यह स्त्री विषय ही विषय नहीं है। स्त्री को छोड़ दिया, फिर भी निरे विषय ही हैं। विषयरहित मनुष्य हो ही नहीं सकता। जब तक दृष्टि नहीं बदलती, तब तक विषय ही है। जब दृष्टि बदले, उसमें भी जब सम्यक दृष्टि हो, तब विषय कम होते हैं, लेकिन विषय जाते नहीं हैं। वह तो जब सातों प्रकृतियाँ निकल जाएँ, तब विषय जाता है।
___ अक्रम के अलावा कहीं ऐसी छूट मिलेगी?
इसलिए अक्रमविज्ञान में तो आपकी खुद की पत्नी के साथ के अब्रह्मचर्य व्यवहार को हम ब्रह्मचर्य कहते हैं। लेकिन वह भी विनयपूर्वक का, और बाहर किसी स्त्री के प्रति दृष्टि नहीं बिगड़नी चाहिए। यदि दृष्टि बिगड़े तो तुरंत धो डालना चाहिए। तो उसे, इस काल में हम ब्रह्मचारी कहते हैं। दूसरी जगह पर दृष्टि नहीं बिगड़ती, इसलिए उसे ब्रह्मचारी कहते हैं। वह क्या कोई ऐसा-वैसा पद है? और फिर लंबे समय बाद, जब उसे समझ में आता है कि इसमें भी बहुत गलती हो रही है, तब हक़ का भी