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विषय नहीं, लेकिन निडरता वही विष
यह नया वाक्य रखना पड़ा। यदि थोड़े पक्के होते, चवन्नीभर कच्चे होते
और बारह आने पक्के होते तो मुझे यह भी नहीं कहना पड़ता। यह एक अपवाद रखना पड़ा! अब इससे यह ज्ञान कुछ चला नहीं जाएगा, लेकिन उसे खुद को वह उलझा देता है। दवाई लेनी तो ज़रूरी है ही, क्योंकि 'मेरिज' हुई है। लेकिन स्त्री-पुरुष का जो संबंध है, उसमें से मैंने आपको अलग नहीं किया है। लेकिन नियम क्या कहता है कि यदि मोक्ष में जाना है तो खाना क्यों है? जैसे भूख मिटाने के लिए खाना है, वैसे ही दवाई तो बुख़ार चढ़े तभी पीनी चाहिए न? आपको समझ में आया कि 'बुख़ार चढ़ा' किसे कहेंगे और किसे नहीं?
अब इतना ही, एक छोटे से नियम का पालन करने को कहता हूँ। इसमें कोई बहुत मुश्किल चीज़ है ? उसमें भी यदि आप साइन्टिस्ट (जैसी सोचवाले) व्यक्ति हो, तो आपसे कहने की ज़रूरत नहीं है। ये सभी साइन्टिस्ट नहीं हैं न? यह दवाई तो बहुत अच्छी है, सुगंधित है, इसलिए पी लो न, कहता है ! अरे! वह दवाई है। दवाई का शौक़ नहीं रखते! दवाई का शौक़ तो होता होगा? दवाई तो उपाय है।
प्रश्नकर्ता : शौक़ किसका रखना चाहिए?
दादाश्री : आनंद का। हमेशा आनंद रहे, उसीका शौक़ रखना और थाली में जो आए वह खाना-पीना और मौज करना। उसके लिए कोई मनाही नहीं है। और ब्रह्मचर्य पालन किया जा सके तो उसके समान कोई सुख, उस सुख की तो कोई मर्यादा (सीमा) ही नहीं है, इतना अधिक सुख है! अमर्यादित(असीम) सुख है ! वह मैंने देखा है और अनुभव किया है! इसीलिए तो हमें पूरे दिन आनंद ही रहता है न! ऐसा आनंद रहे तो फिर विषय याद ही नहीं आए। विषय याद ही नहीं आए तो फिर झंझट ही कहाँ रहा?
शुरू करो आज से ही... 'बुख़ार चढ़े तो दवाई पीना' मेरी यह बात आपको पसंद आई या नहीं आई?