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विषय नहीं, लेकिन निडरता वही विष
लीपने का शौक़ है? वह पुलिस से चिरौरी करके कहेगा कि 'ज़रा पानी ला दीजिए न।' यानी लीपने के लिए चिरौरी भी करता है, क्यों? क्योंकि उसे ऐसे में सोना अच्छा नहीं लगता, यानी उसे शौक़ नहीं है। कब छूटू, ऐसा उसके मन में रहता ही है, फिर भी वह लीपता है। तो क्या यह विरोधाभास नहीं है? नहीं, यह विरोधाभास नहीं है। यह तो, कामचलाऊ चाहिए या नहीं? वर्ना कमर टूट जाए। इसी तरह हम कहते हैं कि आप यह दवाई पीना, लेकिन इसमें से कब छूटू ?' यह तो चूकना ही नहीं चाहिए न? ऐसी जागृति नहीं रहे तो किस काम का?
है डिस्चार्ज, लेकिन माँगे जागृति अपना यह अक्रमविज्ञान क्या कहता है? चार्ज को 'चार्ज' कहता है और डिस्चार्ज को 'डिस्चार्ज' कहता है। डिस्चार्ज यानी हमने कोई भी त्याग करने को नहीं कहा है। यह ज्ञान दिया, अतः आपको जिनका त्याग करना था, वे अहंकार और ममता, उन दोनों का त्याग हो गया और ग्रहण करना था निज स्वरूप, 'शुद्धात्मा', वह ग्रहण हो गया। यानी त्याग करने की चीज़ का त्याग हो गया और ग्रहण करने की चीज़ ग्रहण हो गई! अतः ग्रहण-त्याग का झंझट रहा ही नहीं कि मुझे यह ग्रहण करना है या इसका त्याग करना है, ऐसा! दूसरा, अब सिर्फ निकाल करना रहा, क्योंकि हमने हमारे ज्ञान से खोज की है कि यह सब डिस्चार्ज है। अब है डिस्चार्ज, फिर भी इस काल के लोगों को हमें चेतावनी देनी पड़ती है, स्त्री-पुरुष के विषय संबंध में चेतावनी देनी पड़ती है।
एक महात्मा हैं, जो फिर ऐसा मान बैठे थे कि यह सब डिस्चार्ज ही है। तब मैंने उन्हें समझाया कि डिस्चार्ज का मतलब क्या है? जब आपको बुख़ार चढ़ा हो तो फिर पत्नी से पूछना कि आपको बुख़ार चढ़ा है? दोनों को बुख़ार चढ़े तो दवाई पी लेना। एक को बुख़ार चढ़ा लेकिन अगर पत्नी को बुख़ार नहीं चढ़ा हो, तब तक आपको भी दवाई नहीं पीनी है यदि दोनों को बुख़ार चढ़े, तभी पीना। यह तो रोज़ पीता है। मीठी है न, फर्स्ट क्लास, दोनों... यानी मैं ऐसा कहता हूँ उन्हें। नहीं तो शरीर कैसे दिखेंगे! अब, उस अज्ञानता में पहले दुःख था, जलन ही थी पूरा दिन, इसलिए तू पूरा दिन,